किसी दैवीय अनुष्ठान हेतु
श्रद्धा की अपरिमित निष्ठा से
एकत्रित पुष्प दूर्वा
में निहित
पवित्रता की अनुभूति ही है
प्रेम!!!
जिसे संजोकर
क्लांत मन
मसृण ध्वांत को
दुग्धवर्णी सौम्यता का
कलेवर दे
पाता है!!
प्रीति
३६५ :२५
-
🇮🇳
अर्पित सुमन श्रद्धा के, समेट समस्त व्योमांजलि,
नमन तुम्हें ऐ देश के गौरव, अश्रुपूरित श्रद्धांजलि !-
नारी हूं मैं...!!!
जननी मैं, जीवन भी मैं
अपर्णा भी मैं,अन्नपूर्णा भी मैं
श्रद्धा मैं, पूजा भी मैं
स्वप्न हूं, साकार भी मैं
भाषा की अलंकार भी मैं
खुद में, मैं कभी रिक्त नहीं
खुद में ही सशक्त हूं मैं.....!!!
दान हूं मैं, दात्री भी मैं
अंबर मैं,धरती भी मैं
नीर हूं मैं, निर्मल भी मैं
संकीर्ण हूं, समतल भी मै
दर्पण हूं, अक्स भी मैं
नहीं झुकु,वो शख्स भी मैं
अभिमान मैं,स्वभिमान भी मैं
अर्पण हूं,समर्पण भी मैं
कठिन मैं, सरल भी मैं
जीवन की हर रंग भी मैं,
कभी नहीं अपूर्ण हूं मैं
खुद में ही सम्पूर्ण हूं मैं....!!!! (स्तुति)
-
आप संग चलें!
तो ज़हर रुसवाइयों का भी
हंसकर पीना चाहते हैं।
महज़ आप ही एक ऐसी मौत हैं,
जिसे हम जी भर कर जीना चाहते है।
-
ध्वज शीश उन्नत बीस का, रचता नवल इतिहास है।
सब विषमताएं शांत कर, विजयी हुआ विश्वास है।
पावन हुई समृद्ध धरा, श्रीराम लौटे हैं भवन।
उत्कर्ष में डूबे सभी, शुभ ध्वनि उचारे दिक् पवन।
जयघोष की है दिव्यता, उद्घोष यह सम्मान का।
शुभ भावना है राष्ट्र की, गौरव भरे अभिमान का।
भर अंजुरी शुभकामना, अर्पण करें शुभ आस है।
ध्वज शीश उन्नत बीस का, रचता नवल इतिहास है।
प्रीति-
“श्रद्धा”
""""""
श्रद्धा भाव हो
नर नारी के लिए
अंतरात्मा से।
प्रकृति प्रेम
साथ ही संरक्षण
जीवों का हित ।
शील युक्त हों
संस्कार परक हों
मनुष्य सब ।
धर्म सम्मत
श्रद्धा युक्त जीवन
भाव प्रसून ।
श्रद्धा सुमन
अभिगामी आवेगों
से उत्पन्न हो ।
मन तरंग
से उत्पन व्यग्रता
शान्त हो जाए ।
जीवन पथ
सही हो तो श्रद्धा से
मिले श्रेष्ठता ।।-
दुसरो को आइना दिखाना
स्वयं के पैर में स्वयं से
कुल्हाड़ी मारने का बेहतर तरीका है...-
मौत अटल हैं , अटल की भी न टल सकी,
श्रद्धा सुमन तू अटल पथ पर बिखर जाना।
-
अभिशप्त होकर भी जो प्राण रक्षा करती है
वो हमारे घर आँगन की खुश्बूदार तुलसी है
-