सूमनाे में कितनी सुंदरता,
माली नहीं भ्रंमर से पूछाे।
याैवन की ये मादकता ,
दिल से नहीं नजर से पूछाे।
नदी की धारा चंचल कितनी,
लहर से नहीं सागर से पूछाे।
प्यासी धरा कि आकुलता ,
बूंदाें से नहीं गगन से पूछाे।
तुमसे मिलने की व्याकुलता,
मुझसे नहीं अपने मन से पूछाे।
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