किसने कहा !
की वह हुनरमंद है।
सच्चाई बस इतनी सी है,
कि उसका रब ,
उसकी तरक्की को,
रजामंद है।-
आंखों में बुजुर्गों के लिए शर्म रखती हूं।
काबा हो कि बुतकुद... read more
जिंदगी में शामिल कुछ लोग,
बरसते हैं बारिश के बूंदों की तरह।
और फिर चले जाते हैं,
मेहमान की तरह।
पर कुछ लोग होते हैं,
ओस के बूंदों की तरह।
आते हैं ,
और ठहर जाते हैं ,
नर्म अहसास की तरह।-
सब को जोड़ने की कोशिश में
मैं खुद को भुल गयी।
जब लेनी चाही सुध अपनी
तो जिंदगी की शाम ढल गयी।-
इस खुशफहमी में हूं मैं, की तुझको भुला बैठी हूं।
सच तो ये है की अपनी नींद और अपना चैन, सब गंवा बैठी हूं।-
वो मुझसे इतनी दूर है ,
उसका अक्स निगाहों
से नजर नहीं आता।
उसे बिछड़े इतना वक्त
गुजर गया ,
उसका चेहरा समझ नहीं आता।
पर कोई भी ऐसा लम्हां नहीं,
जब वो मेरे ख्यालों में नहीं।
ये प्रेम हीं तो है न!!
मेरी मां ❤️-
कविता
ये हैं क्या!!
चंद शब्दों,
या कुछ पंक्तियों का समूह।
या किसी विरहनी के अंतर्मन से निकली व्यथा।
किसी भक्त के वाणी से निकली
उसके अराध्य की कथा।
प्रेमिका के सौंदर्य पर पागल किसी
प्रेमी की अभिलाषा।
या फिर पथिक के बार- बार गिर कर भी ,
गंतव्य पर पहुंचने की आशा।
देश पर जान न्योछावर करने को उतावले ,
जवानों की वाणी।
या फिर बच्चों को सीने से लगा
मां गाती है जो कहानी।
किसी गृहणी के रोटियों के भाप से जलने पर,
मन में आते भाव।
या फ़िर लहलहाती फसल देख किसान जो गावे ,
मूंछ पर दे के ताव।
भाव है सबके अलग-अलग,
अलग है सबकी कथा व्यथा।
खुशी या ग़म में जब मन कुछ कहता,
तब जाकर बनती है एक नई कविता।-
कोई एहसास रहा नहीं बाकी ,
अब इन्सान की फितरत में ।
मशीन बन के रह गया है ,
जिंदगी की जरूरत में..-
नया साल
सूरज ढलता है
ताकि ,
तारे जगमगाएं ।
फूल खिलते हैं ,
और बिखड जाते हैं ।
ताकि ,
कोई कली मुस्कुराये।
कह कर अलविदा,
विदा लेता है दिसंबर ।
ताकि,
दिसंबर के अनुभवों से सीख कर।
जीवन पथ पर ,
जनवरी आगे बढ़ते जाए-
कितना अजीब है न,
जब भी कुछ मांगना हो,
हम हांथ जोड़ते हैं,सर झुकाते हैं।
वैभव, शक्ति,या शिक्षा,
हर चीज की खातिर,
स्त्री से हीं गुहार लगाते हैं।
पर वही स्त्री जब शिशु रुप में
गोद में आती।
सब उसे बोझ बताते हैं!!
ऐसा क्यों??-
हौले-हौले कोई अजनबी आता है,
हमारी जिंदगी में
और फिर हौले-हौले वो हमारी जिंदगी बन जाता है♥️-