जश्न-ए आज़ादी का मनाते हो कैसे
जब लूट रही बहू बेटियों की आबरू है,
लहराता तिरंगा पूछ रहा ये हमसे है,
कब सर उठाकर आज़ादी से
बहू, बेटियाँ और माताएं इस
मिट्टी की जी पाएँगी?
ऊंचाई पर फहराता मैं,
धरती पर जब देखता हूँ,
कदमों में मेरे रोती बिलखती
लाचार बेटीयां नज़र मुझे आती हैं,
रौंदकर जिनको गुज़रे कई राक्षस हैं,
ऐसी आज़ादी मुझे भाती नहीं
जिसमें माँ बेटियाँ महफूज़ कुछ खास नहीं।
लहू तब शामिल था स्वतंत्रता सैनानीयों का,
आज़ादी मुझे दिलाने को,
आज लहू देश की बहू बेटियों का
आज़ादी जीने की, मुझसे माँगा करता है।-
Spiritual Healer by profession, I just got a few thoughts one day,(years... read more
हम अपनी हस्ती मिटा आए थे,
बेवफाई की दुनिया में
हम वफ़ा के फूल खिला आए थे,
सुकून उनके नाम, हम तड़प
अपने नाम कर आए थे,
इश्क़ की गहराईयों में
खुद को कुछ यूँ डुबो आए थे।-
ज़ख्मों को दिल के हमने
बड़े नाजों से छुपाए रखा है,
कुछ इस तरह कांटो पर
हमने गुलिस्तां सजाए रखा है,
बरसातें हो न जाएं
आंखों से कहीं किसी रोज़,
आंखों पर हमने
झुकी पलकों का कुछ
ऐसा बांध बनाए रखा है।-
दोस्तों से ग़िला क्या हम करें,
हमें तो खुद से मिले ज़माने हुए हैं।-
उसने कहा था हमराज़ हूं मैं तेरा,
राज़ दिल का मेरे जिस्से
बाँटा था मैंने गेहरा,
तूफानों में साहिल हूं मैं तेरा
ऐसा ही कुछ मुझसे उसने कहा था,
जाने कब वो हमराज़ दग़ा दे गया,
राज़ दरमियाँ था जो हमारे
अब वो सरेआम हो गया,
साहिल केहता था जो मेरा खुद को,
खुद मेरी ज़िंदगी तूफानों से भर गया।-
उसने कहा था हमराज़ हूं मैं तेरा,
राज़ दिल का मेरे जिस्से
बाँटा था मैंने गेहरा,
तूफानों में साहिल हूं मैं तेरा
ऐसा ही कुछ मुझसे उसने कहा था,
जाने कब वो हमराज़ दग़ा दे गया,
राज़ दरमियाँ था जो हमारे
अब वो सरेआम हो गया,
साहिल केहता था जो मेरा खुद को,
खुद मेरी ज़िंदगी तूफानों से भर गया।-
कोई अपनों से ज़्यादा क़रीब हो जाता है,
कोई बताए ऐसा क्यों हो जाता है,
वो हो तो तन्हाइयां भी मेहफ़िलों सी लगतीं हैं,
वो साथ छोड जाए तो दुनिया भी झूठी लगती है,
कोई इतना अज़ीज हो जाए, के
खुद से खुद की मोहब्बत कम हो जाए,
कोई बताए कोई इतना ख़ास क्यों हो जाता है,
किसी की खुशियाँ किसीके ग़म,
हमारी जान से ज़्यादा कीमती हो जाए,
खुद फना होकर, किसी को आबाद कर जाएं,
कोई बताए ऐसा इश्क़ किसी से क्यों हो जाता है।-
हम दर ए दुनिया छोड़ेंगे जब,
और आसुओं की बारिशें सुनाएंगी
अफसाने दर्द ए मोहब्बत के हमारे जब,
एहसास होगा शायद तुम्हें तब,
के चोट मोहब्बत की जिसने थी खाई
वो तुम थे या हम,
दिल पर खाकर हज़ारों चोटें
जिसने क़ुर्बानी मोहब्बत की दी अपनी
वो तुम थे या हम,
हँस कर छुपाए जुदाई के ग़म,
रुस्वाइयाँ मोहब्बत में जिसने सहीं सब,
वो तुम थे या हम।-
कई तूफानों को अपने दिल में
क़ैद किये साहिलों पर खड़े थे हम,
दुनियाँ समझ बैठी बड़े ख़ुश हैँ हम,
कहा, तुमभी तो ज़रा चख लो तूफानों को,
बड़े मज़े से खड़े हो जो बचकर साहिल पर तुम,
क्या ख़बर थी उन्हें कितने तूफानों से लड़े हैं हम,
साहिल तो बस एक छलावा था,
हमारी नज़रों से देखा होता, तो जानते,
बस तूफानों से ही घिरे हैं हम।-
ज़िंदगी को बड़ी आरज़ू थी तेरी,
मौत को गले लगा कर देखें,
क्या हासिल होता है हमें।-