खुशियों की दुनिया मुझसे कुछ रुसवा रहती है
मुझे मेरे मां की खबर ही ना पता रहती है !
मै तो छोड़ आया था मां को खुद से दूर किसी घर में,
मेरी मां वहां पर भी मेरी तारीफ करती रहती है !
कभी मिलने को भी ना जाता हूं मै उनसे
और वो मुझे - मेरे बचपन को याद करती रहती है !
जाते - जाते अपने सामान के साथ एक मेरी तस्वीर ले गई थी वो,
मेरे हंसते चेहरे को देख वो मुस्कुराती रहती है !
आज भी उसको कोई शिकायत नहीं मुझसे
मेरी नज़रे अब उसके सामने शर्म से झुकी रहती है !
( Please read the caption 🌸 )-
आधार नसलेल्या हाताला ,
आधार कुणी द्यावा..
बाप म्हातारा झाला म्हणून,
का वृद्धाश्रमात न्यावा..
ज्यांनी फक्त तुझी,
स्वप्ने साकार केली ,
त्याला हा दिवस द्यावा..
आईची माया लवकर ,
विसरला रे तू भावा..
आधार नसलेल्या हाताला,
खरंच आधार कुणी द्यावा..-
दुःख ! दुःख पिकलेल्या पानांचं
दुःख ! थरथरणाऱ्या ओठांचं
ओसांडल कुणाच्या डोळ्यातून
तर कुणाच्या भावहीन मुद्रेतून
नऊ महिने सांभाळून
कूस पडली सुनी
हाताचा पाळणा करून
काठीच निसटली हातातून
पोटाला पीळ घालून
मुलाला जपलं
आता अनाथ करून
आश्रमात आणून सोडलं
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प्यारी माँ पे बाते जिसने हज़ार लिखी हैं,
माँ उसकी भी वृद्धाश्रम में बीमार पड़ी है।।-
कौन कहता है कि बीता हुआ वक्त वापस नहीं आता
अरे सुन मेरे ख्वाब आज फिर से जवां हो गए-
ये उस सपूत की माँ आयी है
जिसने नौ माह अपने गर्भ में रखा था
और वो जय माता दी केहकर निकल गया-
प्यार से उनको एकबार बुलाकर तो देखिए
कदमों में उनके ये सर झुका कर तो देखिए
खुद को भूल गए जो तुम्हें कुछ बनाने में
कुछ पल उनके साथ बिता कर तो देखिए
क्यों तने हुए हो अपने इस रुतबे के गुरुर में
उनके प्यार की कीमत चुका कर तो देखिए
थकी आंखों,कांपते हाथों से नजरें न चुराओ
खुद को भी इस रूप में बैठा कर तो देखिए
अपने तक ही अपनी दुनिया समेटने वालो
कभी किसी रोज़ वृद्धाश्रम जा कर तो देखिए-
मां मंदिर है, मां मस्ज़िद है,
मां पूजा है, मां ही भगवान।
फिर बच्चे क्यों बन जाते हैं,
स्वार्थी इंसान?
मां को भेज देते हैं वृद्धाश्रम,
और घर में पूजते हैं पत्थर के भगवान।
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बड़ी सस्ती मिला करती हैं दुआएँ इनकी,
कभी किसी बुज़ुर्ग के काम आ जाया करो,
मंदिर मस्ज़िद से आजिज़ आ जाये दिल तो,
किसी वृद्धाश्रम तक यूँ ही चले जाया करो..-