बाज़ार में भीड़ कुछ पहले सा लगता है, कोरोना का डर अब लोगों से खत्म सा लगता है, प्रिये अब तुम भी लौट आओ हमारे शहर में, बिन तेरे मेरे लिये ये शहर तो वीरान सा लगता है।
तेरे बिना सब वीरान सा लगता है आईने में भी खुद का चेहरा अंजान सा लगता है तेरी याद में गुजर रहा है हर एक पल ना दिन का ना शाम का पता चलता है किस किस को सुनाएं दास्तां अपनी हर एक दिल यहां बेईमान सा लगता है
तेरी चुप होने की अदाकारी समझ रहा हूं,ये सैलाब लाएगी... तूफानों से पहले की ख़ामोशी है, ये जान निकाल ले जाएगी... बयां कर दे इरादों को साहेब,तपिश अंगारो की देने से पहले... खोई वफाएं वीरान दिलों में,उजड़े हुए बाग का फरमान लाएगी...। #क्या_साहेब
यादों की सरजमी ं पर तेरा धुंधला सा अक्स, वीरान ज़िंदगी को रौशनी से भर जाता है, पुरानी किताबों में छुपे सूखे गुलाब की तरह तसव्वुर तेरा सहरा-ए-दिल महका जाता है !
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