बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी। त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी॥
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एक तो तेरे नाम हजार हैं
तू ही सबका पालनहार है
जिस कण मे तेरा नाम ना भोले
वो कण-कण बेकार है।
जय भोलेनाथ।-
हे त्रैलोक्य स्वामी ! हे नटराज !
हे नीलकण्ठ ! हे विश्वनाथ !
या मुझको दिखलाओ राह
या ले लो मुझको भी अपने साथ ।
निहारिका है तुम्हरी दासी
दे दो दर्शन हे भोलेनाथ !
हे गंगाधर ! हे बैरागी !
हे त्रिभुवन स्वामी कृपानिधान !
आप पधारो धरती पर
संताप हरो , हो जगकल्याण ।-
एक लक्ष्य बांध ले,
कदम बढ़ा तू ऐ पथिक.!
क्यों मौन हो के राह में,
विवश खड़ा तू ऐ पथिक.!
कृपा है विश्वनाथ की,
स्वयं बड़ा तू ऐ पथिक.!
स्वतंत्र, है तू बंध से,
सृजन खरा तू ऐ पथिक.!
असीम का तू अंश है,
ना मन गिरा तू ऐ पथिक.!
सिद्धार्थ मिश्र
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मृत्युलोक पर पुण्य सजा विश्वनाथ दरबार,
गंगा जिस तट से बहे, करे जगत उद्धार।-
वो जो ज्ञानवापी मस्जिद है न
वहीं है हमारे विश्वनाथ का निवास
मुस्लिम आक्रांताओं ने तोड़ कर
हथिया लिया हमारे शिव का आवास-
मैं विलीन हूँ शिव में लीन हूँ
मैं नरेंद्र हूँ, मैं नरेंद्र हूँ
युगों-युगों का संकल्प शेष हूँ
मैं नरेंद्र हूँ, मैं नरेंद्र हूँ..-
शिव-शम्भु की नगरी,कुल्हड़ की लस्सी और चाय..
जीवन है वयर्थ जब गंगा घाट पर शाम ना बिताए,..
शायद ही कोई मूर्ख हो !
जिसे काशी विश्वनाथ की नगरी बनारस ना भाए।।-
शौर्य शलाका दृश्यमान..
जय महाकाल करुनानिधान..
जय जय कृपालु हे शिव महान,
जग हित करते हो गरल पान,
प्रेरित तुमसे सब जड़ चेतन,
तुमसे वसुधा जीवन मे प्राण...!
तुमसे ही रात्रि तुमसे विहान,
कोटि कोटि तुमको प्रणाम,
स्वतंत्र मेरी हर श्वांस में तुम,
हर शब्द में तेरा ही आवाह्न..!
तुम विश्वनाथ जग के प्रमाण,
जड़ चेतन के तुम अंश दान..
सामर्थ्य कहां मुझमे हे शिव?
लिख पाऊं तुम्हारा यशोगान..!
#महादेव
सिद्धार्थ मिश्र-
प्रभु चरणन मन अनुरागी
हम तुम मा रमै हुए बैरागी..
जगत संग न प्रीति हमारी
तुम मन बसै तो अब का चाही..-