मोहक मुरलिया माधव बजाएं
कर्कश जगत को मधुमय बनाएं
अमृतमयी गीता माधव जब गाएं
सबके हृदय हर चिंता मिटाए
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माटी में मिल जाऊँगा
बस इतनी सी कहानी है
इतना ही फसाना है
इतना ही जाना है
इतना ही बताना... read more
मानवता रोती घायल है धरती
कविता भी रोती न श्रृंगार रचती
ड्रोनों मिज़ाइल की बौछार होती
वसुधा कहो कि कैसे न रोती
दानव की दुनिया में जरूरत नही अब
मानव से दानव भी डरने लगा है
मानव ही मानव का दुश्मन हुवा है
बारूद की होली मनाने लगा है
देखो जिधर विप्लव ही विप्लव
मची मजहबो में अंधी लड़ाई
ख़ुदा तू नही है ऐसा ही लगता
इबलिश चलाता तेरी ये दुनिया-
बीते दिन न बीते दर्द भरी घड़ियां
पल पल रुलाये पल पल दुखाये
राते तो है पर नींद खो गयी है
बातें तो है पर व्यर्थ हो गयी है
दुनिया भी है महफ़िल है कितनी
तुम ही नही तो कुछ भी नहीं है
जीना भी अब सजा सा लगे है
मगर क्या करे वश कुछ नहीं है
जिंदा तो हूँ पर जीता नही हूँ
उसपे सितम ये मरने न पाएं
मोहब्बत की ऐसी प्रथा न पता थी
होती पता तो मोहब्बत न करते
तुमसे न मिलते अपना न कहते
तुम्हारी जुदाई में ऐसे न रोतें-
माता उमा पिता शिव शंकर
मो सम जग में कौन है सुंदर
एक शक्ति दूजे प्रलयंकर
मो सम जग में कौन है सक्षम
विश्वनाथ मम नाथ सर्वदा
मैं विनयी विजयी हूँ नित दिन
जगजननी का मिला संरक्षण
मो सम जग में कौन बड़भागी-
मेरी कामनाओं की हर दिशाएँ
तुम तक ही आये माधव तुमको ही पाएं
माधव मिलन हो विरह ये खतम हो
तुमको ही पाएं माधव तुम तक ही आएं
जनम जनम की यही रीती कहानी
हर बार चाहे नाथ हर बार हारे
माया निगोड़ी नाथ हर बार जीते
तेरे चरण से नाथ हर बार खींचे
अबकी जनम नाथ माया ये हारे
हम जीत जाये माधव तुमको ही पाएं
तुमको पुकारे नाथ तुमको पुकारे
रोम रोम कहे माधव तुम हो हमारे-
सुनो,थक गये हो जीवन समर में
विश्राम करना फिर से संवरना
रात दुलार करती, हमसे कहती
ठहरो जरा,फिर आँचल में भरती
उर्जित करो तन नयन स्वप्न धर के
माधव को संग कर सुबह फिर उठो तुम
विनयी बनो विजय हो तुम्हारी
पुनः मुझसे मिलना उत्साह भरना-
स्वयं सूर्य बनना दहकना धधकना
पापा से सीखा स्वयं ताप सहना
आंगन गगन में नियम से उदित हो
उजाला सभी के जीवन में भरना
स्वयं सूर्य बनना नियम से उदित हो
फिर अस्त होना मगर उससे पहले
अपनी दहक से अपनी अगन से
प्रकाशित हमें कर चंद्र करना
हर पुत्र का बस व्यक्तित्व इतना
पिता सूर्य है पुत्र चंद्र जैसा
जीवन अगन में पिता ने दहक कर
उर्जा भरी और कहा तुम चमकना-
उतना ही देना उतना ही लेना
जितने में माधव सबका भला हो
सबके भले में मेरा भला हो
तुमसे नाता मेरा जुड़ा हो
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तेरे वियोग में नैन हुवे बागी
कान्हा, नैन हुवे बागी
माने न मेरा कहना
रोये और रुलाये
कहते है छलिया हो तुम
हर वादा है झूठा
कैसे बताऊ कान्हा
कान्हा ही साचा
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