काग़ज के नोटो के आगे,
विवश हो मानव तन त्यागे,
ऐसी भी क्या नोटो की महिमा ,
जिसे मानव ने गढ़ा हो विवश ,
उसी के पीछे भागे ,अन्नपूर्णा जो खेतों में उपजे, जीवन तृप्त हो जिसको पा के,
अमूल्य अन्न का मूल्य काग़ज के नोटों में आँके, कैसी ये कलयुग की माया,बहुमूल्य रतनों के बदले खुश हैं लोग कागज के नोट पा के,
जीवन को भी कागज के नोटो से तौल रहे हैं,
सृष्टि के रचियता की श्रेष्ठतम रचना आज कागज के नोटों से जीवन हार रही है,
करूणा, दया विलुप्त हुई है,
बस काग़ज के नोटों की होड़ लगी है ,
मानवता विवश खड़ी है ।
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