रश्मि बरनवाल "कृति"   ("कृति"✍️)
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Joined 18 January 2018


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Joined 18 January 2018

तो आँखें न हो नम।
शिकवे न हो लबों पे
कुछ यूँ मिलें सनम।

न पाने की हो आरज़ू
न खोने का हो ग़म।
अपनी ज़ुदा राहों पर
बस चल पड़ें क़दम।

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मातृभाषा मेरी हिंदी।
अंग्रेजी के तो अक्षर भी गूंगे हैं
तेरी बोलती है हर बिंदी।

हिंदी लिखते रहें...बोलते रहें...
सभी हिंदी प्रेमियों को
हिंदी दिवस की ढेरों शुभकामनाएं💐

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तुमसे कोई अब शिक़ायत नहीं
करूँ भी क्या तुमसे मैं अब गिला
जब ख़ुदा की ही मुझपे इनायत नहीं

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डर सा लगता है अब
कितना कुछ घट रहा है
हमारे इर्द-गिर्द
पहुँच तो जाएंगे न अपनी मंजिल तक
मिल तो पाएंगे न अपने अपनों से
ये सवाल ज़ेहन से जाता ही नहीं
लंबा सफ़र अब रास आता ही नहीं
कहीं ये भागती हुई वीडियो आख़िरी तो नहीं
कहीं ये सफ़र आख़िरी तो नहीं

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एक ख़ूबसूरत सुबह है
और आप अपने परिवार के साथ हैं
आप सफ़र पर थे और सकुशल घर लौट आए
आपका शरीर स्वस्थ है और आप अपने काम पर हैं
ख़ुश होने के बहाने ढूंढिए, उदासियों को दरकिनार करिए
आपके पास ऐसा बहुत कुछ है जिसकी औरों की तमन्ना है
एक शक्ति! जो सृजन भी कर रही है और विनाश भी
उसे (आप जिस भी नाम से मानते है )
धन्यवाद कीजिए

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अगर लगता है कि
लिख सकते हैं...
आपके जज़्बात भी
ख़ूबसूरत दिख सकते हैं...
इतना मुश्किल भी नहीं
अपने दिल के एहसासों को संजोना...
बस रखिए खुद पर भरोसा
और शुरू करिए शब्दों के मोती पिरोना...

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कल क्या होगा?
क्या पता?
जीवन कैसा फ़लसफ़ा?

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झूठ कहते हैं लोग
बोझ होतीं हैं बेटियाँ,
सबसे भारी बोझ होता है
पिता के कंधे पर बच्चे की अर्थी का बोझ।
इतना कि कदम आगे नहीं बढ़ पाते हैं...
जिस बच्चे को उंगली पकड़ कर चलना सिखाया
उसी बच्चे की चिता को मुखाग्नि देते वक्त
हाथ जड़ हो जाते हैं...

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जहाँ से तुम्हें भी शिक़ायत हुई थी

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हम भी आदत डाल लेंगे बिन तुम्हारे जीने की,
बस बता दो यादों को मेरी कहाँ दफनाओगे...?

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