रश्मि बरनवाल "कृति"   ("कृति"✍️)
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Joined 18 January 2018


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Joined 18 January 2018

चाय की प्याली
आँसू घड़ियाली
हँसी दिखावे वाली

थोड़ा बढ़ा लीजिए
ग्रीन टी की प्याली
जोश में ताली
ज़िंदगी में खुशहाली

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निग़ाहों में अपनी बसाया था तुमने

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मैं चिप्स सी नमकीन प्रिये!
तुम पके फलों के दीवाने
मैं कच्चे खट्टे में लीन प्रिये!

तुम हो स्थिर चित्त पुरुष
मेरे भीतर चंचल बच्चा।
स्वाद-स्वभाव विपरीत मगर
प्यार हमारा है सच्चा।

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है
दुनिया
मतलबी
कहते सभी
अफ़सोस ये है कि
इसी दुनिया में रहते सभी

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तन्हाई में महफ़िल सजाया है उसने

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खुद से शरारत,
खुद से शिकायत,
खुद की हिफाज़त कर देखो...
औरों को बस परे करो
फ़िर खुद से मोहब्बत कर देखो...

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बहुत आसान है
दूसरों के आंसुओं का मज़ाक बनाना...
बहुत मुश्किल है
जब दर्द अपना हो तो आंसुओं को रोक पाना...

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झूठ कहते हैं लोग कि वक्त हर जख्म भर देता है...
देखो आ गया दिसंबर
फ़िर दर्द कर रहे हैं मेरे सारे पुराने ज़ख्म...

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झूठ कहते हैं लोग
वक्त हर जख्म भर देता है...
देखो आ गया दिसंबर!
फ़िर दर्द कर रहे हैं
मेरे सारे पुराने ज़ख्म...

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एक प्रताड़ित नौजवान कर लेता है आत्महत्या
क्षणिक भावावेश में नहीं, सोच-विचारकर...
व्यवस्था और जीवन-संगिनी से हारकर...
अगर मृत्योपरांत न मिल सका उसे न्याय...
तो सोचो! क्या आसमाँ में समा सकेगी उसकी हाय...

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