रश्मि बरनवाल "कृति"   ("कृति"✍️)
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Joined 18 January 2018


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Joined 18 January 2018

झूठ कहते हैं लोग
बोझ होतीं हैं बेटियाँ,
सबसे भारी बोझ होता है
पिता के कंधे पर बच्चे की अर्थी का बोझ।
इतना कि कदम आगे नहीं बढ़ पाते हैं...
जिस बच्चे को उंगली पकड़ कर चलना सिखाया
उसी बच्चे की चिता को मुखाग्नि देते वक्त
हाथ जड़ हो जाते हैं...

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जहाँ से तुम्हें भी शिक़ायत हुई थी

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हम भी आदत डाल लेंगे बिन तुम्हारे जीने की,
बस बता दो यादों को मेरी कहाँ दफनाओगे...?

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माँ!

हमारी दुआओं में हो इतना असर,
स्वस्थ रहें माँ उनकी लंबी हो उमर...

फिर भी डराता है अक्सर,
माँ को खोने का डर...

क्या होगा तब,
वो नहीं होंगी जब...

फेवरेट कॉन्टैक्ट में नहीं मिलेगा नाम
सिर्फ़ यादें रह जाएंगी उम्र तमाम...

हर सुख, हर दुःख किससे बाटूँगी
उनके बिना ज़िंदगी कैसे काटूँगी...

माँ जैसा दुनिया में कोई प्यारा न बने
वो धरती पर रहे आसमाँ का तारा न बने...

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कभी ना मुस्कुराऊँ तो
ये रिश्ता ना निभाऊँ तो
अगर मैं रूठ जाऊँ तो
कभी जो घर ना आऊँ तो
या शायद मर भी जाऊँ तो
तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है

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अकेलापन...जब महसूस होने लगे अकेले हैं हम

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ज़िंदगी में जो मज़ा है, आज है इस पल में है...
कौन जाने है छुपा क्या, आने वाले कल में है...

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चाय की प्याली
आँसू घड़ियाली
हँसी दिखावे वाली

थोड़ा बढ़ा लीजिए
ग्रीन टी की प्याली
जोश में ताली
ज़िंदगी में खुशहाली

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निग़ाहों में अपनी बसाया था तुमने

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मैं चिप्स सी नमकीन प्रिये!
तुम पके फलों के दीवाने
मैं कच्चे खट्टे में लीन प्रिये!

तुम हो स्थिर चित्त पुरुष
मेरे भीतर चंचल बच्चा।
स्वाद-स्वभाव विपरीत मगर
प्यार हमारा है सच्चा।

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