।।मैं पुनः कर रही श्रृंगार हूँ।।
(कविता अनुशीर्षक में पढ़ें)
-ऋषिकेश-
🌺 विधवा 🌺
काश मै,
उसके मंगलसूत्र का कोहिनूर बन पाता ।।
उस के मुरझाए चेहरे का नूर बन जाता ।
होती तकलीफ जमाने को बहुत अगर मै,
उस की उजड़ी मांग का सिंदूर बन जाता ।।
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हक है उसे भी
लाल जोड़े पहन कर सुंदर दिखने का
चूड़ा पहन इठलाने का
बड़ी सी बिंदी लगाकर चेहरे को सौम्य बनाने का
अपने कानों के झुमके से घर को रौनक करने का
अपने पायल की छनक से पूरे घर मे छन छन करने का
बांध अपने पैर में घुंघरू नाचने का
पैरों में आलता लगा घर को लाल करने का
होठों पर लाली लगा मुस्कुराने का
सारे हक हैं उसे भी
क्या हुआ अगर वो दुल्हन से विधवा हो गई
इसमें उसका कोई दोष नहीं
ये नियति है उसका किया कोई गुनाह नहीं
जिसकी सजा उसे रंगहीन करके मिले
विधवा है तो क्या हुआ औरत है वो भी
श्रृंगार करना शौक है और हक़ भी उसका
हर लिबास में वो सुंदर है
पर उसकी पहचान लाल रंग है
अगर लाल रंग उसे पसन्द है
तो हक़ है हर विधवा को भी लाल रंग में रंगने का ❤️
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चार लाइनें.. एक कहानी .. उसकी जुबानी..
सफेद चादर की थी छाप,
गया समाज के खिलाफ,
ओढ़ाई बसन्ती प्रेम चुनर
किया पाणिग्रहण स्वीकार..
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बेशक़ मेरा साथ तुझे अच्छा लगता है
फ़िर तेरा ये कहना "मुझे जाना होगा",
मैं समझ जाता हूँ
मुझे दोगुना प्यार निभाना होगा,
अपने हिस्से का इश्क़
तू ख़र्च कर चुकी पहली ही पारी में,
मुझे मूल से ज़्यादा ब्याज़ चुकाना होगा,
क़िस्मत में लिखा किसी के बस का नही
इस बात का यकीन तुझे दिलाना होगा,
ये रंग जो तूने सफ़ेद ओढ़ लिया है
ये ख़्वाब का नाता जो कालिख़ से जोड़ लिया है,
लिबाज़ का रंग बाद में
पहले ख़्वाहिशों को रंगवाना होगा,
और तू क्या परवाह करती है ज़माने की
हाथ पकड़ मेरा, तेरे क़दमो में ज़माना होगा...-
मैं मर्द हूँ,न (लघुकथा 99 में प्रका.)
जिसकी पत्नी को मरे सालभर भी नहीं हुए थे कि रिश्तेदारों ने दूसरी शादी के लिए दवाब देना शुरू कर दिया।उसने यह कहके इंकार किया कि चालीस वर्ष की उम्र में विवाह उचित नहीं और फिर दो बच्चों का भी तो ख्याल रखना है,न जाने सौतेली माँ उनसे कैसा व्यवहार करे?
परंतु रिश्तेदारों ने समझाया कि कमाऊ लड़के के लिए लड़कियों की क्या कमी?चालीस की उम्र हुई तो क्या हुआ?आजकल तो 30-32 की उम्र में विवाह होना आम बात है।आखिर बच्चों को भी तो माँ की जरुरत है?माँ सिर्फ माँ होती है-सौतेली या सगी नहीं?इन तर्कों से सहमत होकर वह पुनर्विवाह के लिए सहमत हो गया।
एक दिन उनका एक रिश्तेदार एक ऐसी लड़की का प्रस्ताव लाया जो सुन्दर,सुशिक्षित और गृहकार्य में दक्ष थी।परंतु विवाह के एक माह बाद ही उसका पति गुजर गया।अमीर घराना है,दान-दहेज़ भी अच्छा मिलेगा।
सुनते ही उनके तन-बदन में आग लग गयी-"आखिर आपकी हिम्मत कैसे हुई,मेरे लिए विधवा का रिश्ता लाने की?प्रतिमाह 7000 रु.कमाता हूँ ,सरकारी नौकरी है,दोमंजिला मकान है।क्या मेरे लिए सारी कुंवारी लड़कियां मर गयीं?
"आपकी भी तो पत्नी मर गई और आप गर्व से दूसरी शादी कर रहें हैं।क्या उस लड़की को भी ऐसा करने का हक़ नहीं है?आखिर आपमें और उसमे क्या अंतर है?
"मैं मर्द हूँ,न?"सुनकर प्रस्ताव लानेवाला अवाक् रह गया।(बदलाव/अक्टू-नव.1999 में प्रकाशित)
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है अगर वो विधवा, तो इसमें उसका क्या कसूर,
रहना पड़ता है, जाने उसको क्यों मजबूर।
चलों बदल डालें, अब ये दकियानूसी दस्तूर,
चुने जीवनसाथी वो पुनः, हो तन्हाई उसकी भी दूर।-
इतनी भी क्या जल्दी थी दूसरी शादी की तुम्हें
अभी तो तुम पहले पति की विधवा भी नहीं हुई थी।।-
सती प्रथा , विधवा विवाह ये कब का हटा दिया गया पर फिर भी आज तक उन घटिया लोगों की उस घटिया सोच देश के कुछ हिस्सों मेंअब भी बाकी रह गया है।
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