नाली में गोता लगाए हुये इंसान
नशे में होने के कारण वो ये समझ
ही नही पा रहा कि दुर्गंध नाली में है
या उससे बाहर ..ठीक उसी प्रकार
मन की आँख पे काली पट्टी बंधी हो जिसके,
उसके सामने क्या स्वेत रंग, उसे तो सब काला ही दिखना है
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कैसे हो..?
ठीक हूँ..!
तुम कैसे हो...?
मैं भी ठीक हूँ!!
ऊपर की दो लाइनों का सिटी स्कैन किया जाए तो हजारों गम, लाखों ख्वाहिशें और बेहिसाब अंत किये गए सपने मिलेंगे, और इन सभी पर "ठीक हूँ की ओढ़ाई गयी चादर मिलेगी..!!-
जीवन में क्या ऐसे पडाव आते है जब हर पल ये लगे कि अब आगे क्या करना है ....ऐसा लग रहा मानो जो समय मिला है खुद के बिखरे अस्तित्व को समेटने को वो खुद को बिखरा हुआ देखने मे ही बीता जा रहा है ..क्या करना सही होगा क्या करना गलत जैसे कुछ समझ नही आ रहा....
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कितने सवाल है इस मन मे
जब इन सवालों के जवाब मिले
तो लगा हम सवालों में ही उलझे ठीक थे-
जीवन में जितने अच्छे जिन्हें किरदार मिले
जीवन मे उनके कष्ट उतने ही गहरे मिले...-
देखते देखते इक घर के रहने वाले
अपने अपने ख़ानों में बट जाते हैं
- ज़ेहरा निगाह-
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ,
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊं!
- मुनव्वर राना-
आँखों में आँसू भरे किन्तु अधरों में मुसकाता हूँ
चलते-चलते थक गए पैर फिर भी चलता जाता हूँ
- गोपालदास ‘नीरज’-