वाबस्तगी पर बवाल देखो
रुपयों पर गिरे इंसान देखो
लौ पर लौ लगाते है लोग
अब तो जाना ईमान देखो
हर मूरत में ढूंढते है ख़ुदाई
कभी माँ की ज़बाँ पर अज़ान देखो
लगें है हर मन पर ताले यहाँ
अब आते कहाँ मेहमान देखो
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मैं क्यूं इतना किसी के इश्क़ में चूर हो गया
अहसास हुआ मै ख़ुद से बहुत दूर हो गया
देखा नहीं जो मुद्दतो से क़ल्ब - ए - आईना
इश्क - ए-नमाज़ मेरा अब मकरूह हो गया
दर - दर तलाशता फिरता रहा सुकून
तोड़ा किसी ने इस तरह दिल मजरूह हो गया
मै अपने जमाने हाल का क्या - क्या बयां करूं
एक डाल पर बैठा - बैठा मग़रूर हो गया
मीर" किताबों में दबे सुख गए फूल गुलाब के
दिल का हरा जो ज़ख़्म था अब नासूर हो गया-
उससे वाबस्तगी इतनी के वो मेरा कोई नहीं
उससे वादे वफा भी नहीं के वो मेरा कोई नहीं
बात इतनी सी है के बगैर उसके मेरा कोई नहीं
वो भी ये जानता है बेशक के वो मेरा कोई नहीं
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ढूंढता हूं अपने शिकस्त घर में अब भी तुझको,
मालूम है मौजूदगी नहीं तिरी मगर जिंदा है तुझसे वाबस्तगी मेरी।-
आए कोई आके लूट लेे मुझे
हक रूह का हो अदा रूह से।।
बलखाती नदी सू ए बहर चली
रूह की मुक़म्मल सज़ा रूह से।।
लज्ज़ते वस़्ल , अज़ीयते हिज़ृ
बज़ाहीर रूह का मज़ा रूह से।।
शबनम उतरती आबशार में
अजा का मिलन बजा रूह से।।
सू ए बहर - समंदर की ओर,
लज्ज़ते वस़्ल - मिलन बेला का मज़ा
अज़ीयते हिज़ृ - विरह पीड़ा ,
बज़ाहीर - स्पष्टतया/clearly ,आबशार - झरना
अजा - प्रकृति , बजा - सही/उचित
"राजे"फ़ानी-
वाबस्तगी अगर खुद से कर ली जाए, तो जनाब आपकी आंखें कभी नम नही हो सकती....
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मुसलसल रहता था निज़ाम रूठने-मनाने का,,
फिर मुख़्तसर ख़राब क्या हुए हालात तुमने तो
रास्ते ही बदल डालें हमारी वाबस्तगी का....
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जमाने से भी वाबस्तगी है थोड़ी सी...!!
मगर तुझसे जो सिलसिला है वो मोहब्बत है...!!!!-
मानिंदे ज़ुल्फ उसका मुझसे उलझ जाना
नज़रे मोहब्बत एक, पल में सुलझ जाना ।।
उसका दौड़ते फिरना रग रग में लहू सा
इशारों में बयां करना ,इशारे समझ जाना।।
( मानिंदे ज़ुल्फ - जुल्फ़ों की तरह )
"राजे"फ़ानी-