ये बेजान सी हंसी माथे पे शिकन
यकीनन शौकिया तो नहीं ओढ़ा ये कफन
कहो तो क्या ढूंढ़ते हो बुतों की बस्ती में
किसकी तलाश में हो
सुखनवर-
जाने क्या ढूंढता है दिल
ख़ामोश बस्ती में ज़ुबां ढूंढता है दिल
इक चीज़ जो वहां खो गई थी
क्यूं यहां ढूंढता है दिल...
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यदि प्रेम फिर गर्भित न हुआ
दिए हुए आघातों से पल्लवित न हुआ
मुझे संशय है के कभी हो पाएगा
उपलक्ष्य में सदियों की विरह देखकर
तू कृतार्थ हो जाएगा
कोई पल कुछ पल में तुम्हें
क्या न मिल पाएगा
हे ईश मेरे कब तुझसे
रूखा सूखा सराहा जाएगा
अभी भी वंदित होना है तुम्हें
ना ना प्रकारेण
क्या तुझको ये विदित नहीं
इस बाग में तूने जो बोया है
वही तो पाएगा...-
जेकर कोई गल दिल ना मन्ने
ओनूं किसे दी खातर वी मन्नी ना
मनौण वाला रब भी गवाह नी वणदा
जदौं रुह ते मुकदमा चलदा या
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एक मौसम सा एक लम्हा कभी बीतता ही नहीं
इक याद जो अश्क छोड़ जाती वो रीतता ही नहीं
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दुनियां की हवाएं आज भी नहीं बदलीं
आज भी सर्द मौसम सर्दी का है
तुम भी रूतों से न टकराना ए दिल
मौसमों के साथ लिबास बदलना पड़ता है
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तुझको कितना पढ़ा बस तुझको ढूंढने के लिए
हर्फों से वाकिफ नहीं थे मगर किताबों के शौक पाल लिए-
इश्क को जितनी मिली कम ही उम्र मिली
नमी आंखों में होठों को चुप की हिदायत मिली
बेवफ़ा कोई नहीं बस खुद से शिकायत मिली
हाल ए दिल सब ने पूछा हंस के, हमदर्द बता के
ना फिर किसीसे दुनियां में अपनी तबीयत मिली
जिसने किए दिल फरेब दावे किए ना रौशन यहां कोई शख्सियत मिली
नामचीन इन गलियों में एहसास के मारों को जब मिली अज़ीयत मिली
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वो जितनी बातें करते हैं इश्क की
उतना प्यार से ख़ाली हैं
ये ऊंची ऊंची इमारतों वाले
इक अदना घर के सवाली हैं-