Philosopher Me'e r   (Meer Azad)
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Wish me on 16th jan
Joined 10 April 2018


Wish me on 16th jan
Joined 10 April 2018
15 SEP AT 8:39

You came into my life like rain,
Like a sweet dream without pain.
Whenever I feel you near,
My heart starts to stir, sincere.
The blood within my heart is cheering—
Oh, what a beautiful feeling!

When you came into my life,
My dry heart bloomed with love.
My bitter days turned into peace,
Like the gentle flight of a dove.
The land of my heart was barren,
You watered it with love so pure.
Oh, how precious you are, my dear.

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14 SEP AT 16:34

I Am the Same Even at That Time

I am the same even at that time
When I feel you in my heart,
The world moves on like a restless tide,
But I stay where we fell apart.

The wind carries whispers of your name,
Through empty streets and lonely rain,
I close my eyes, I see your face,
Yet I wake to the same old pain.

I am the same even at that time,
When your memories knock on my door,
I smile through the breaking silence,
But inside, I'm shattered more and more.

The nights are long, the stars don't speak,
The moonlight fades on this empty street,
I wait for you though I know the truth
Some wounds are never meant to heal.

I am the same even at that time,
When my heart bleeds in quiet rhyme,
The world may laugh, the sun may shine,
But your absence is my endless crime.

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11 SEP AT 22:33

#लफ्ज़ और मुहब्बत #
ये लफ़्ज़-ए-इश्क़ सिखाया तुमने
एहसास-ए-ख़ास भी दिलाया तुमने।

तेरी मुस्कान से रोशन हुआ ये दिल मेरा,
जैसे वीराने में गुलशन सजाया तुमने।

फ़लक से उतार कर चाँद भी रक्ख दिया,
ज़ुल्फ़ों के साए में जब छुपाया तुमने।

नज़र का सफ़र अब दिल तक पहुँच गया,
इश्क़ का आईना जब दिखाया तुमने।

मक़ाम-ए-हयात अब ख़ुशबू से महक उठा,
दर्द-ए-ज़िंदगी भी मुस्कुराया तुमने।

हो गई है मुझसे मेरे नाम से भी मोहब्बत,
कहकर *मीर आजाद* जबसे बुलाया तुमने।

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10 SEP AT 23:49

तेरी ज़ुल्फ़ के साए में सहर ढलती रहे,
मैं ख़्वाब सा जागूं और रात मचलती रहे।

तेरी झील-सी आँखों में डूबा रहूँ सदा,
जहाँ का हर समंदर मुझसे यूं जलती रहे।

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8 SEP AT 22:10

"गर इश्क़ कभी होता आसां ए’ मीर,
किसी दिल में न होती वीरानी की तसवीर।"

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2 SEP AT 22:36

मुहब्बत या अफसाना

मुहब्बत के अफ़साने हज़ार मिलते हैं,
मगर सच्चा प्यार कहाँ बाज़ार मिलते हैं।

कभी चेहरों पे नक़ाब, कभी दिल में अंधेरा,
ये रिश्ते हमें हर रोज़ किरदार मिलते हैं।

वफ़ा की राह में जो चलते हैं सच्चाई से,
उन्हें अक्सर काँटे, न केसर-गुलज़ार मिलते हैं।

लगी हो आग जब ज़ालिम हवाओं के हाथों,
तो फिर ख़्वाब भी राख में अंबार मिलते हैं।

तलाश करता हूँ सुकून इश्क़ के सहराओं में,
मगर वीरानों में बस ग़मग़ीन मजार मिलते हैं।

कहाँ ढूँढें वो दिल जो हो साफ़ आइनों सा,
"मीर” अब तो सबको बस अदाकार मिलते हैं।

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29 AUG AT 8:23

#हाल मेरा क्या जाने #
पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा, हाल मेरा क्या जाने,
दिल के वीराने का मंज़र, ख़ुद सवेरा क्या जाने।

रात भर तन्हाई में, अश्क जो मैंने पी लिए,
चाँद तो चमका मगर, दर्द गहरा क्या जाने।

राह में काँटे बिछे हैं, फूल हँसकर खिल गए,
हुस्न की ये अदा देखो, दर्द तेरा क्या जाने।

आसमाँ से पूछता हूँ, क्यों ये दिल यूँ टूटता,
बादलों का शोर तो है, आँधियों का क्या जाने।

तेरी महफ़िल में हज़ारों दिल बहल जाते रहे,
पर "मीर आजाद" की नज़र का, राज तेरा क्या जाने

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26 AUG AT 23:45

कोई अर्थ नहीं!!
जब टूट जाए विश्वासों की डोर,
चाहे दौड़ो हज़ार रिश्तों की ओर,
पर उस मन की गहरी खाई को
भर पाता कोई शेष नहीं।

जब धरती सूख जाए बिन वर्षा के,
फूल मुरझाकर झर जाएँ,
फिर आने वाली ऋतु के वादों का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।

जब ज्योति बुझ जाए सपनों की,
आशाएँ अंधेरों में खो जाएँ,
फिर बीते उजालों के वादों का
रह जाता कोई मोल नहीं।

जब नन्ही-सी आशा दीपक की
आंधियों से हारकर बुझ जाती है,
फिर प्रकाशित हज़ारों सूरज का
लाता जग में कोई असर नहीं।

जब कोई प्रिय अपना बिछड़ जाए यदि जीवन से,
चाहे लाखों यादें मन में सहेजी हों,
उन यादों में बहती अश्रु-धारा का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।

सुख-सुविधा चाहे जितनी हो,
महल, वैभव या स्वर्ण के द्वार,
जब मन का चैन छिन जाए तो
उन सबका रह जाता कोई अर्थ नहीं।

सच कहता है “मीर आज़ाद”,
मन की शांति बिन जीवन का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।

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12 AUG AT 22:03

ये कैसा दौर है कि सच्चाई बिकने लगी,
हर बात, हर ख़बर, सियासत में लिपटने लगी।

कलम की नोक पे जो लिखते थे इंक़लाब,
वो कलम आज हीरे-मोती में लिपटने लगी।

इंसाफ़ भी तराज़ू अब पैसों से तोलता है,
क़ानून की किताब भी बाज़ार में बँटने लगी।

जो चाँद बेचते थे कभी रोशनी के लिए,
वो चाँद अब अंधेरों के साथ सजने लगी।

सच बोलने का जुर्माना इतना बड़ा हुआ,
ज़ुबानें डर के तहख़ानों में सिमटने लगी।

दुआओं की भी अब कीमत लगने लगी यहाँ,
मंदिर-मस्जिद की चौखट पे भी बोली लगने लगी।

अब जमीर भी ख़ामोश हो चला, "ऐ मीर"
वो ख़्वाब जो मुफ़्त थे, नीलामी में चढ़ने लगे।

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12 AUG AT 21:31

तू मुझसे यूँ नज़रें मिलाया तो कर,
कभी दिल का हाल भी बताया तो कर।

तू कहती है मुझसे न उलझा करो,
ज़रा अपनी चाहत निभाया तो कर।

तेरे आने से दिल में बहारें खिलें,
कभी यूँ भी मुझको मनाया तो कर।

तू कहती है ख्वाबों में मत आना अब,
कभी नींद में मुझको बुलाया तो कर।

अगर "मीर"की मोहब्बत से इंकार है तुझे
तो सच्चाई दुनिया को सुनाया तो कर।

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