Rajesh Khanna   ("राजे" फ़ानी)
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Joined 28 September 2019


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1 AUG AT 14:02

गर्मजोश वो गले लगा और फिर बाहें खोल दी
उस ने सर्द फ़ज़ाओं में अधूरी कहानी घोल दी //

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29 JUL AT 21:27

कश्कोल तले लकीरों का
कोई पूछे हाल फ़कीरों का //
कश्कोल- भिक्षा पात्र

हर -सू बिखरे पर परिंदों के
और बज उठना ज़ंजीरों का //
हर -सू - हर ओर

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29 JUL AT 21:08

खिलते हैं गुलों से कभी कभी ये ख़ार होते हैं
आलम महब्बत वालों के पुर-असरार होते हैं//
पुर-असरार - रहस्य से भरे हुए

ना सैय्याद बोले है ना शिकार बताता है
दिल की बाज़ी लगती है तो कितने वार होते हैं//
सैय्याद - शिकारी

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29 JUL AT 0:29

रंग मुख़्तलिफ किए जमा इस हयात के
उस गुलाबी रंग से इक दफ़ा निखार दो //
मुख़्तलिफ़ - भिन्न भिन्न, हयात -ज़िंदगी

यूॅं तो पेच- ओ- ख़म*ज़िंदगी के कम नहीं
और वो काकुलें उलझा के बोला सॅंवार दो//
*उलझाव और अटकाव, काकुलें-ज़ुल्फ की लटें

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26 JUL AT 10:55

वो लम्हे जो हमने भीग कर गुज़ारे हैं
तिश्ना हैं अब भी, तेरी तलब के मारे हैं//
तिश्ना - प्यासा

कहकशां बज़्म है सितारे ही सितारे हैं
शुमार नहीं है तेरा बाकी सारे के सारे हैं//
कहकशां - आकाशगंगा

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25 JUL AT 22:44

आह ने अर्श की ज़ंजीर हिलाई होती
साअत- ए -वस्ल* हर तौर ज़ेबाई होती //

अर्श -असमान, *मिलन की घड़ी, ज़ेबाई -शोभित

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24 JUL AT 19:41

एक बार सरापा मुझे छू कर तो देख
एक बार मैं संदल में नहा के तो देखूॅं //

सरापा - सर से पांव तक

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24 JUL AT 11:34

एक बार सरापा मुझे चूम के तो देख
एक बार मैं आग में झुलस के देखूॅंगा //

सरापा - सर से पाॅंव तक

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22 JUL AT 22:36

मैं मौज में हूँ मुझ पे तेरी ख़फ़्गी नहीं वाज़िब
मैं मौज में हूँ और पैकर तेरा तराश रहा हूॅं //

ख़फ़्गी- नाराज़गी, पैकर -देह, आकृति

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20 JUL AT 11:16

ज़ख्म पे मरहम का एहतियाज न होने पाए
दिल तो टूटे मगर आवाज़ न होने पाए //
एहतियाज - ज़रूरत

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