गर्मजोश वो गले लगा और फिर बाहें खोल दी
उस ने सर्द फ़ज़ाओं में अधूरी कहानी घोल दी //-
कश्कोल तले लकीरों का
कोई पूछे हाल फ़कीरों का //
कश्कोल- भिक्षा पात्र
हर -सू बिखरे पर परिंदों के
और बज उठना ज़ंजीरों का //
हर -सू - हर ओर-
खिलते हैं गुलों से कभी कभी ये ख़ार होते हैं
आलम महब्बत वालों के पुर-असरार होते हैं//
पुर-असरार - रहस्य से भरे हुए
ना सैय्याद बोले है ना शिकार बताता है
दिल की बाज़ी लगती है तो कितने वार होते हैं//
सैय्याद - शिकारी-
रंग मुख़्तलिफ किए जमा इस हयात के
उस गुलाबी रंग से इक दफ़ा निखार दो //
मुख़्तलिफ़ - भिन्न भिन्न, हयात -ज़िंदगी
यूॅं तो पेच- ओ- ख़म*ज़िंदगी के कम नहीं
और वो काकुलें उलझा के बोला सॅंवार दो//
*उलझाव और अटकाव, काकुलें-ज़ुल्फ की लटें
-
वो लम्हे जो हमने भीग कर गुज़ारे हैं
तिश्ना हैं अब भी, तेरी तलब के मारे हैं//
तिश्ना - प्यासा
कहकशां बज़्म है सितारे ही सितारे हैं
शुमार नहीं है तेरा बाकी सारे के सारे हैं//
कहकशां - आकाशगंगा-
आह ने अर्श की ज़ंजीर हिलाई होती
साअत- ए -वस्ल* हर तौर ज़ेबाई होती //
अर्श -असमान, *मिलन की घड़ी, ज़ेबाई -शोभित-
एक बार सरापा मुझे छू कर तो देख
एक बार मैं संदल में नहा के तो देखूॅं //
सरापा - सर से पांव तक-
एक बार सरापा मुझे चूम के तो देख
एक बार मैं आग में झुलस के देखूॅंगा //
सरापा - सर से पाॅंव तक
-
मैं मौज में हूँ मुझ पे तेरी ख़फ़्गी नहीं वाज़िब
मैं मौज में हूँ और पैकर तेरा तराश रहा हूॅं //
ख़फ़्गी- नाराज़गी, पैकर -देह, आकृति-
ज़ख्म पे मरहम का एहतियाज न होने पाए
दिल तो टूटे मगर आवाज़ न होने पाए //
एहतियाज - ज़रूरत-