हिज़्र हुआ मयस्सर फ़िर फ़िर शब ए विसाल* में
और रखी रह गई मय उस चश्म- ए- ग़ज़ाल**में//
हिज़्र -विरह, *मिलन रात्रि, **हिरन सी सुंदर आँखें
हादसे ये सदमे ये बा -कमाल मौसम
हैं काटे गए फ़ुरकत के लम्हे ऐन विसाल में //
फ़ुरकत - विरह, विसाल - मिलन-
झुलस गए बाल- ओ- पर परिंदे के धूप में
कुंज-ओ-किनार*हो अब सबा सबा भी हो//
*कोना किनारा, सबा - सुबह की निर्मल हवा
साकी क्यों ख़फ़ा, हम पिछली सफ़ में बने रहे
हमने कसम से जाम कोई एक पिया भी हो//
सफ़ - पंक्ति
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मौकूफ़ नहीं है मय पे तमाम मस्तियां ये मेरी
मख़मूर आंखों में उनकी देखो हुआ इंतज़ाम अपना//
मौकूफ़ - निर्भर, मख़मूर - नशीली
सुना लब लबों से सिलने का हुनर बड़ा है तेरा
अब ये लब भी चाहते है सतरंगी मक़ाम अपना//
ना उजलत से काम लीजे हम पीछे खड़े हैं साकी
आख़री सफ़ है बाक़ी रखिए दौर ए जाम अपना//
उजलत - जल्दबाजी, सफ़ - पंक्ति
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यक बार तो इकरार- ए- आशनाई दे
फ़कीरों को तोहफ़ा- ए- रू-नुमाई दे //
रू-नुमाई - मुॅंह दिखाई-
गर्दिश ए वक्त को इल्ज़ाम ए बेवफ़ाई दे
कोई सितारा उतरे अर्श से मेरी गवाही दे//
अर्श - असमान-
सुना है आख़िर सब ठीक हो जाता है
क्या ये आख़री है सब ठीक हुआ जाता है//-
गाहे- ब- गाहे वो नुमू होते हैं वजूद में मेरे
ख़ुदाया उनमें ख़ू-ए- बे-हिजाबियाॅं* अब भी हैं//
*बे - पर्दगी की आदत , नुमू - प्रदर्शित
ये क्या गर्दिश है उनका आना उनका जाना यकदम
ख़ैर हो ,तबीयत में उनकी शिताबियाॅं अब भी हैं//
शिताब - आतुरता, जल्दबाज़ी
कौन जाने मरते दम की हसरतें, कफ़न उड़ता है
मतलब के लाश में इज़्तिराबियाॅं अब भी हैं//
इज़्तिराब - बेचैनी-
वो नाज़ों से होता है ख़्यालों में नाज़िल
अब कम ही मिल बैठते हैं हम मुझ में //
नाज़िल - अवतरित
जब से उन आँखों से वाबस्तगी हुई
समंदर ही समंदर हो गए रक़म मुझ में //
वाबस्तगी - संबंध
कई गुजिश्ता नज़ारे कई शिकस्ता मंज़र
बाब- दर -बाब हो गए ये ज़म मुझ में //
गुजिश्ता - गुज़रे हुए, शिकस्ता - हारे हुए
बाब - अध्याय, ज़म - आत्मसात-
बड़ी तदबीर से मैंने तहरीर किया था
वो चेहरा जिसने मुझे असीर किया था//
असीर-बंदी, क़ैदी
हर ढंग आज़माता है आब अपने वो
बदन जो हुनर ने मेरे शमशीर किया था//
आब - धार, शमशीर - तलवार-
जहाॅं से रब से कलाम शुरू होता है
वहाॅं से इक नया निज़ाम शुरू होता है//
कलाम -वार्तालाप, निज़ाम - व्यवस्था,management-