अनिल चौधरी   (पृथ्वी)
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मुझ में दफ़्न हैं....
दयार मुहब्बत का..

फ़ुर्सत मिले तो ...
कभी आ कर देखो..
Joined 26 March 2022


मुझ में दफ़्न हैं....
दयार मुहब्बत का..

फ़ुर्सत मिले तो ...
कभी आ कर देखो..
Joined 26 March 2022

नज़र आती हैं तेरी निग़ाहों में बेअदबी
तेरे इतफाक़ में साजिश की बू आती हैं
टूटी हुई शाखो पर नये फूल नहीं आते
तुझे कागज़ के फूलों में ख़ुशबू आती हैं

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तेरे हर क़िस्से से वाक़िफ हूं मैं...
बता कौनसा क़िस्सा बयाँ करू...

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मेरा ख़ुदरंग अंदाज़ अब ज़फा हो गया
मैं जिससे भी मिला, वो खफ़ा हो गया
क़ायम है अदब मेरी, मेंरे 'इश्क़' से...,
बेअदब जो हुआ, फिर बेवफ़ा हो गया

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मेरा इश्क़ बेवफ़ा है, मेरी वफ़ा कहां जाएं
शोर मचा है कितना, खामोशी कहां जाएं


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किस किस क़िस्से की कहानी कहता
मेरी ज़ात के क़िस्से शोर मचाए हुए हैं

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बात इश्क़ निभाने की थी
हम इश्क़ कर बैठे
बस तुम निभा देना

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बूढ़े दरख़्त की सुखी शाखों पे
चाँद आ कर टिकता है !!
मेरे गाँव आना कभी..,
तुम्हारे शहर की रौशनी फ़ीकी लगेगी !!

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अज़नबी, दोस्त, प्रेमी, हमसफर बन गया
इश्क़ करते करते इश्क़ अब ज़हर बन गया

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रोज़ का तमाशा, रोज़ की आदत हो गई है
इश्क़ हो नहीं सका, पर मोहब्ब्त हो गई है

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तुम इत्तेफ़ाकन मिल गये...
हम आदतन इश्क़ कर बैठे...

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