नज़र आती हैं तेरी निग़ाहों में बेअदबी
तेरे इतफाक़ में साजिश की बू आती हैं
टूटी हुई शाखो पर नये फूल नहीं आते
तुझे कागज़ के फूलों में ख़ुशबू आती हैं-
मुझ में दफ़्न हैं....
दयार मुहब्बत का..
फ़ुर्सत मिले तो ...
कभी आ कर देखो..
नज़र आती हैं तेरी निग़ाहों में बेअदबी
तेरे इतफाक़ में साजिश की बू आती हैं
टूटी हुई शाखो पर नये फूल नहीं आते
तुझे कागज़ के फूलों में ख़ुशबू आती हैं-
मेरा ख़ुदरंग अंदाज़ अब ज़फा हो गया
मैं जिससे भी मिला, वो खफ़ा हो गया
क़ायम है अदब मेरी, मेंरे 'इश्क़' से...,
बेअदब जो हुआ, फिर बेवफ़ा हो गया
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मेरा इश्क़ बेवफ़ा है, मेरी वफ़ा कहां जाएं
शोर मचा है कितना, खामोशी कहां जाएं
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बूढ़े दरख़्त की सुखी शाखों पे
चाँद आ कर टिकता है !!
मेरे गाँव आना कभी..,
तुम्हारे शहर की रौशनी फ़ीकी लगेगी !!-
रोज़ का तमाशा, रोज़ की आदत हो गई है
इश्क़ हो नहीं सका, पर मोहब्ब्त हो गई है-