वाक़िफ़ तो मैं खुद से भी इरादतन नहीं होना चाहती,
मौत से पहले तक अपनी पीठ के खंजरों का भी
हौसलाअफजाई करना चाहती हूँ..।-
तुमसे दूर रह कर तुम्हारे करीब रहना आता है
मुझे खुशी से जीना आता है।।
मै समन्दर की वो लहर हूँ जो हवा के साथ अपना
रुख बदल लेते है.......
मैं वो रंग हूँ जो बेरंग ज़िन्दगी में भी रंग घोल देते है
मुझे संजीदगी से ज़िन्दगी को जीना आता है
मैं परिन्दों का वो आशियाना हूँ जहाँ सुकून का
काफिला ठहरता है......
वाकिफ हूँ मैं ज़िन्दगी के हर मोड़ से जहाँ ज़िन्दगी
का हर पहर बदलता है
मुझे ज़िन्दगी का हर मुकाम हासिल करना आता है
मुझे ज़िन्दगी को जीना आता है.....
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वाकिफ कर देना हमें......,
हो खौफ! अगर, तीरगी से तुम्हें,
दे देंगे, जुगनूओं की रोशनी, तौफे में तुम्हें।।-
तेरे इश्क से रग रग से वाकिफ हूँ मैं.......
तू उदास भी होता है अगर तो ख़ामोशी
मेरे जज्बात से छलकती है-
ऐ समन्दर मैं तुझसे वाकिफ हूँ
मगर इतना बताता हूँ
वो आंखें तुझसे ज्यादा गहरी हैं जिनका मैं आशिक हूं-
ना अश्क़ से वाकिफ थे,
ना ही इश्क़ के काबिल हुए हैं...
फिर भी ऐ ग़म,
हम तेरी स्कूल में दाखिल हुए हैं...-
कौन कैसा है क्या है
सब की असलियत से
वाकिफ हूं जनाब
खामोश हूं अंधी नहीं हूं।-
इंसानियत ही यहां डर रही है इंसान से,
ना देख राह रोशनी की, आगे है बढ़ना अंधियारे रास्तों से,
वाकिफ नहीं मेरे नन्हे तू इस भीषण वास्तव से,
तबाही का होता अंदाजा तो जन्म ना देती तुझे इस कोख से।-
उस दिन कई बार पूछा उसने हाल मेरा,
शायद वाक़िफ था, आखिरी बार मिल रहा है !!-