Paid Content
-
मिथिला की मैथिल हूं मैं
हूं मैं प्रेम की एक भाषा.....
इस कलयुग में सोच मे... read more
दिल का दर्द इन कागजों के पन्नों पर बहाती हूं
रंग कर इन कागजों को अपने दिल का हाल सुनाती हूं
जीने के बहाने अब इन्हीं कागजों पर ढूंढती हूं
हंसने रोने के बहाने भी इन्हीं कागजों पर उकेरती हूं
यादों के अफसाने बना इन्हीं पन्नों में , मैं जी जाती हूं
इन कोरे पन्नों पर ही अपने अक्स को सजाती हूं
इन्हीं पन्नों को फिर अपने दिल से लगाती हूं
उम्मीद का दामन थामें , ये जिंदगी की सांसे , मैं जी जाती हूं
दिल का दर्द इन कागजों के पन्नों पर बहाती हूं
रंग कर इन कागजों को अपने दिल का हाल सुनाती हूं-
किसी के चले जाने से
या किसी के आ जाने से
यह तो केवल वक्त के
साथ बदलता रहता है।-
मौसम की तरह देखे हैं,
जमाने को बदलते रंग।
अलग अलग रीत है यहां,
अलग अलग है ढंग ।
छोटी सोच देख जमाने के,
दिल भी रह जाते है दंग।
गिरगिटों से अधिक ,
यहां के मानव बदलते है रंग।-
ये दुनिया दीपक और माचिस की तरह है
जिस तरह दीपक माचिस से जलाने के बाद
माचिस को फेंक दिया जाता है।
उसी तरह यहां के लोग भी अपना
मतलब तक ही याद रखते हैं
फिर पहचानने से भी इंकार कर देते हैं।-
हैं हम
हम रुकना नहीं जानते हैं
हर एक नए रास्तों से गुजर
कुछ नया सीखना चाहते हैं।
यूं ही वादियों में भटक-भटक
हम हर एक खुशबुओं का
राज जानना चाहते हैं।-