एक लेखक की संपति होती हैं,
वो कविताएं जो भूलवश या
सुविज्ञ पाठक के अभाव में
नहीं लिखी- पढ़ी गई।
किसी संयोग या परिस्थितिवश,
सम्मान और प्रतिष्ठा पाने वाली कविताएं,
होती हैं किसी शोरूम के बाहर प्रदर्शित
परिधानों के जैसी, जो आकर्षित तो करती है,
परन्तु, मूल्य और पसंद होती हैं,
सिर्फ दुकान में रखी उपेक्षित कविताएं।-
अपने शब्दों से बेहतर लेखक की कोई जगह नहीं होती. किसी भी भावनात्मक क्षण में वो इसी खोल में समा जाना चाहता है.
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।।जिस दिन आपको समझ आ जाएगा कि, आप अपने कहानी के लेखक खुद ही हैं ,उस दिन आपकी कहानी आपके हाथों में होगी।।
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मैं कहानियां लिखता हूँ
मेरे किरदार हर तरफ मिलते हैं
गली में, सड़क पर
स्कूल में, दफ़्तर में
और घर में भी
कुछ किरदार ऐसे भी गढ़े मैंने
अपनी कलुषित कल्पना से
जो पहले नहीं थे
अब मिलने लगे हैं
अब ऐसा कोई किरदार नहीं
जो अछूता हो मेरी कलम से
मैं समझता हूँ
मैंने वही लिखा जो दिखा
पर मेरे कुछ किरदार कहते हैं
वे नहीं होते
गर मैंने उन्हें नहीं गढ़े होते...!!-
अपने जीवन के साथ साथ
वर्तमान की व्यथाओं के ध्यान में
सत्य को उजागर करने को ही
एक लेखक कहा जा सकता है..
मेरी नज़र में सत्य कलम कार
ही एक सच्चा लेखक होता है..।-
Dear YQ ians,
यदि किसी एक दो का नाम लेकर उनकी तारीफ करूँगा तो ये उनके साथ ज्याती होगी जो दिल से और बहुत अच्छा लिखते हैं। मैं समझता हूं सब के पास एक अलग कला है, कोई write-ups अच्छे लिखता है , तो कोई कविता, कोई गज़ल तो कोई नज़्म , कोई one/two liners अच्छे लिखता है तो कोई letters , कोई गीत अच्छे लिखता है तो कोई मुक्तक छंद , कोई व्यंग्य अच्छे लिखता है तो कोई कहानी ,पर सब लिखते बड़ा कमाल हैं किसी एक को चुनना दूसरों के साथ नाइंसाफी होगी। कोई अंग्रेजी का किंग है तो कोई हिंदी का सम्राट , कोई उर्दू का बादशाह है तो कोई हिंदुस्तानी का राजा ,मगर सब लाजवाब हैं। किसी को पढ़ के मन में आक्रोश पैदा हो जाता है तो कहीं असीम शांति मिलती है, कोई गम्भीर से गम्भीर व्यक्ति को हंसा देता है तो कोई पत्थर दिल को भी पिघलने पर मजबूर कर देता है ,पर हैं सभी अद्भुत। कोई आपको अपना गांव याद दिलाता है तो कोई शहर की सैर करा देता है। किसी का लेखन आपको नए शब्दों की सौगात दे जाता है , तो कोई अर्थों के समंदर में गोता लगाने को बाध्य कर देता है। कोई अपनी लेखनी से प्रेमिका की तस्वीर उकेर देता है तो किसी को पढ़कर मां बाप को बार बार thanku कहने का जी करता है। सब अपनी जगह अनमोल है कोई किसी दूसरे की तरह नहीं लिख सकता।
मैं हमेशा कहता हूं चाहे जो हो पर सब आदमी से इंसान बनने में लगे हुए हैं ।-
मैं तुम्हारा अपना कहां ,जो तुम मुझे सुनोगे ।
मैं गालिब, जॉन एलिया,
या नए जमाने का मनोज मुंतशिर भी तो नहीं !
फिर क्यों तुम मुझे पढ़ोगे ❔
पर शायद ,मैं तुममें बसा थोड़ा मैं हूं ।
थोड़े ऐब, थोड़ी उलझन ,थोड़ी हसरतें है मुझमें,
वो कभी ना खत्म होने वाली अधूरी ख्वाहिशें है मुझमें।
बोलो क्या तुम मुझे सुनोगे ❔-
ये जी हांथों मे लाल रंग
सजाये हुएँ है
ना जाने कितनो के खून
बहायें हुए हैं
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जो मन में आये ख्यालों में आये जो भाये
इच्छा से खुद लिखने वाली मैं स्वयं ही लेखिका,
न किसी लेखक की किताबें पढ़ी न पन्ने
जो मैंने यहां अपने मन से है लिख डाले
यह मेरे शब्द मेरी भावनाएं,
दुनिया के लिए अच्छा क्या बुरा क्या नहीं जानती
बस मेरे दिल को अच्छा लगे जो उन भावों को
अपने शब्दों की माला में पिरोकर
अपनी कलम से मैंने यहां पन्नों पर है लिख डाले,
जीवन में शब्दों की ताकत बेहद बड़ी होती है
गलत सही शब्द बात बिगाड़ भी देते है
बना भी देते है पर आपको समझने वाला इंसान
आपके शब्दों में छुपी भावनाएं देखेगा न की
आपके गलत सही शब्द !!
"मेरे शब्द" ✏🙏
दीपा कांडपाल😊❤🌹
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