न पूछ मुझसे मैं किस राह पर था हिजरत में,
मिले हैं ज़ख़्म बहुत हम-सफ़र की चाहत में
न है वो बात रक़ाबत न ही अदावत में,
वो साज़िशें जो छुपी हैं तेरी मुरव्वत में
कभी जो हर्फ़ थे गुम मेरी ही हिकायत के
वो ज़ख़्म बन के बरसते रहे इबादत में
वो लोग जिनकी नज़र थी सदा मुनाफ़े पर
वो तौलते रहे जज़्बात को भी दौलत में
मैं बेख़ुदी में ख़ुदी को गँवा चुका होता
अगर न खो गया होता तेरी मोहब्बत में
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Bahut kuch hai kehna aapse ,per chalo apne poetry ke madh... read more
डीपी मिरी देखे बिना जाने वो कैसे सो गया
कल तक जो मेरा यार था वो आज दुश्मन होगया
कॉमेंट करता ना था जो मेरी किसी भी पोस्ट पर
वो आज कैसे यार अब मेरा दिवाना हो गया
वो फ़ोन को तकिया बना जो घंटों बातें करता था,
अब ब्लॉक कर के चैन से खर्राटे भर के सो गया
कहता था जोड़ी अपनी ये कॉलेब में हिटजाए गी
देखा जो फॉलोवर्स क्यों वो झट से पीछे हो गया
ठरकी है ये अल्गोरिदम फीमेल को आगे करे
था वायरल का सपना जो सपना ही अब तो हो गया
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चूल्हा बुझा था शाम से , रोटी का कोई टुकड़ा नहीं,
बच्चा था भूखा रातभर, कुछ भी मगर बोला नहीं
माँ की नज़र तकती रही, ख़ामोश गलियों की तरफ़,
उसको दिलासा दे सके, ऐसा कोई आया नहीं।
"बाबा की राहें तक रही, आँसू छुपाए रातभर"
"दस्तक किसी ने दी नहीं, कोई भी घर लौटा नहीं"
सूखी हुई रोटी मिली, वो भी सनी थी धूल में,
"माँ ने छुपाकर रख लिया, मैंने भी ये देखा नहीं
सबने कहा माँ मर गई, बस एक रोटी के लिए
मैंने कहा माँ सो गई, बाक़ी तो कुछ बदला नहीं
जिसने जहाँ में हक़ दिया, सबको बराबर जीस्त का,
क्यूँ मुफ़लिसों की रूह पर, कोई करम करता नहीं।
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"बिल-आख़िर तो हम भी ठिकाने लगे"
मोहब्बत में ख़ुद को मिटाने लगे
मुहब्बत के रस्ते है मुश्किल बड़े
ये कह के वो काँटे बिछाने लगे
है दो चार दिन की तो ये ज़िंदगी
बिताने में जिसको जमाने लगे
ये अफ़्वाह है और कुछ भी नहीं
की गैरों से मिलने मिलाने लगे
अभी शेर मैने पढ़ा ही नहीं
अभी से वो क्यों मुस्कुराने लगे
ये जो तुमने हँसते हुए कह दिया
ये कहने में हमको जमाने लगे
जुबां पे हिमानी का नाम आते ही
हमीं शर्म से मुस्कराने लगे
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कभी हमने उसको यूँ देखा ना था,
वो इतना हसीं होगा, सोचा ना था
वो चेहरा जो जन्नत का मंज़र दिखा,
ज़मीं पर मिलेगा ये सोचा न था।
वो तिल जो लरज़ता तिरे होंठ पर,
तसव्वुर में ऐसा नज़ारा न था
तलब उसके होंठों की बढ़ती रही,
समुंदर कभी इतना प्यासा न था
ये कैसी तलब है जो मिटती नहीं,
कभी दिल हमारा बिचारा न था
ख़ुदा का में कैसे करूं शुक्रिया,
जो इस फ़रवरी दिल अकेला न था-
मुझको आईने से देखता कौन है
मेरे जैसा यहाँ दूसरा कौन है
ख़ुद को आईने में देख कर कोसना
अजनबी को भला पूछता कौन है
दर्द की इक नदी दिल में बहती रही
इस समंदर में अब डूबता कौन है
सारे किरदार तो खो गए अब कहीं
इस कहानी को फिर लिख रहा कौन है
हर नज़र में बसी हैं उदासी यहाँ,
इस जहाँ में खुशी बाँटता कौन है
बे-असर हो गई मेरी हर इक दुआ
ए खुदा अब तुझे पूछता कौन है
हर नक़ाबों के पीछे हूँ मैं गुमशुदा
राज़ चेहरे का भी जानता कौन है-
दिल किसने मिरा तोड़ा ये बात पुरानी है
कुछ याद नहीं आता ये कैसी कहानी है
वो फूल किताबों में तो सूख चुके कबके
ये फूल है अब किसका ये किसकी निशानी है
है कैसा सफ़र यारो जो ख़त्म नहीं होता
दिल टूट चुका फिर भी क्यों चाह दिवानी है
चौखट पे तवाइफ़ के ये बात समझ आई
हर इक हँसी के पीछे इक ग़म की कहानी है
कैसी ये मोहब्बत है ये कैसा फ़साना है
जो मेरी दिवानी थी वो तेरी दिवानी है
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