Kefi Thoughts   (Kefi)
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Joined 14 September 2018


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24 JUL AT 22:59

लोग मुझे पागल दीवाना कहते हैं
और मुझे जाने क्या क्या कहते है

आप नए दीवाने उसके लगते हो
मुझको उसका यार पुराना कहते है

हिज्र की रातों में भी प्यार निभाया है
फिर क्यों मुझको लोग आवारा कहते है

महफ़िल में तो ख़ामोशी से बैठा हूँ
लोग मुझे फिर क्यों दीवाना कहते हैं

दिल को कहीं भी अब आराम नहीं
हम उसको ही दिल का ठिकाना कहते हैं

देख मोहब्बत में मेरा क्या हाल हुआ
हमको इश्क में अब सय्यारा कहते है


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8 JUL AT 8:54

मुझसे क्यों तुम यूँ रूठे हो
बोलो दिल में क्या रखते हो

बात मोहब्बत की करते हो
और हमीं से दूर खड़े हो

चल के दे-खो साथ हमारे
इतने तन्हा क्यों रहते हो

इन झगड़ों में क्या रक्खा है
हमसे क्यों लड़ते रहते हो

ऐ जी ओजी सुनते हो क्या
क्या खुद में खोए रहते हो

लो तुम जीते और में हारा
देखो कितने तुम अच्छे हो

आके बैठो पास हमारे
फोन में क्या उलझे रहते हो

क्या कैफ़ी बिन जी पाओगे
क्यों उससे तुम दूर गए हो

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29 JUN AT 10:03


कुछ मोड़ ऐसे आए, क़दम भी ठहर गए
साए जो साथ चलते थे, कब के बिखर गए

हम अपनी ख़ामुशी में सिमटते रहे मगर
कुछ राज़ थे जो अश्क़ से होकर उतर गए

थी ये क़सम कि साथ चलेंगे सदा मगर
थोड़े से फासले में ही रिश्ते बिखर गए,

हर बार लौटते हुए इक शोर रह गया
कुछ नाम थे लबों पे, जो ख़ामोश कर गए

बिखरी हुई किताब का, किस्सा थी मेरी उम्र
कुछ मोड़ ऐसे आये की किरदार मर गए

कैफ़ी की आँख ढूँढती फिरती रही उन्हें
वो चंद यार और वो लम्हें किधर गए

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23 MAY AT 8:56

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23 MAY AT 8:44

तेरे जो करीब आ रहा हूँ
में खुद से ही दूर हो गया हूँ

की उसने हमेशा बेवफाई
और उसका ही सजदा कर रहा हूँ

क्यूं चुपके से वार तू है करता
तेरे ही तो सामने खड़ा हूँ

मेरी ही क़सम वो खा रही है
क्या मैं उसे लग रहा बुरा हूँ

लहजा ये मिरा है खानदानी
तुझको भी मैं आप कह रहा हूँ

तू गौर से देख ले जाने जाना
मैं दिल से तुझे ही चाहता हूँ

अब तुम भी मुझे भुला दो जानम
मैं खुद को भी अब भुला चुका हूँ

कैसे मैं यक़ीं दिलाऊं तुझको
मैं अपना यक़ीन खो चुका हूँ

अब और नहीं सितम करो जान
मैं कह तो रहा हूँ मर चुका हूं

मक़्ते पे पहुँच के हूँ परेशाँ
सबकुछ तो में यार कह चुका हूं

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23 MAY AT 8:43

तेरे जो करीब आ रहा हूँ
में खुद से ही दूर हो गया हूँ

की उसने हमेशा बेवफाई
और उसका ही सजदा कर रहा हूँ

क्यूं चुपके से वार तू है करता
तेरे ही तो सामने खड़ा हूँ

मेरी ही क़सम वो खा रही है
क्या मैं उसे लग रहा बुरा हूँ

लहजा ये मिरा है खानदानी
तुझको भी मैं आप कह रहा हूँ

तू गौर से देख ले जाने जाना
मैं दिल से तुझे ही चाहता हूँ

अब तुम भी मुझे भुला दो जानम
मैं खुद को भी अब भुला चुका हूँ

कैसे मैं यक़ीं दिलाऊं तुझको
मैं अपना यक़ीन खो चुका हूँ

अब और नहीं सितम करो जान
मैं कह तो रहा हूँ मर चुका हूं

मक़्ते पे पहुँच के हूँ परेशाँ
सबकुछ तो में यार कह चुका हूं

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13 MAY AT 8:47


तिरी गलियों से हो कर आ रहे हैं
गुज़िश्ता लम्हे दिल धड़का रहे हैं

किसी की बेवफ़ाई का था चर्चा
न जाने आप क्यूँ घबरा रहे हैं

बिछड़ कर भी तुझी में जी रहे हैं
तिरी यादों से दिल बहला रहे है

तुम्हें भूले ज़माना हो गया पर
न जाने क्यूँ तुम्हें दोहरा रहे हैं

किसी की याद का मौसम है शायद
पुराने ज़ख़्म फिर तड़पा रहे हैं

मोहब्बत फिर से हमने कर के देखी
मगर इस बार भी पछता रहे हैं

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4 MAY AT 9:19

हमारे बीच जब तक 'हम' न होंगे
दिलों के फ़ासले ये कम न होंगे

अगर तू मेरी ख़ामोशी को समझे
तो फिर ये फ़ासले बाहम न होंगे

ज़रा सी चोट पर ही गिर गया तू
तिरे जैसे कभी रुस्तम न होंगे

ज़रा सी बात पर मुँह फेरता तू
तेरे जैसे कभी हमदम न होंगे

हमीं में ख़ामियाँ होंगी जहाँ की
जा तेरे रास्ते अब हम न होंगे

महक आती है तुझसे अब किसी की
बता क्यों तुझसे हम बरहम न होंगे

जो तू जाए तो बस ये याद रखना
सभी होंगे वहां पर हम न होंगे

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11 APR AT 8:43

न पूछ मुझसे मैं किस राह पर था हिजरत में,
मिले हैं ज़ख़्म बहुत हम-सफ़र की चाहत में

न है वो बात रक़ाबत न ही अदावत में,
वो साज़िशें जो छुपी हैं तेरी मुरव्वत में

कभी जो हर्फ़ थे गुम मेरी ही हिकायत के
वो ज़ख़्म बन के बरसते रहे इबादत में

वो लोग जिनकी नज़र थी सदा मुनाफ़े पर
वो तौलते रहे जज़्बात को भी दौलत में

मैं बेख़ुदी में ख़ुदी को गँवा चुका होता
अगर न खो गया होता तेरी मोहब्बत में


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19 MAR AT 9:10

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