तुम क्या सिखाओगे मुझे, प्यार करने का सलीक़ा
मैंने 'माँ' के एक हाथ से थप्पड़, दूसरे से रोटी खाई है
- साकेत गर्ग-
एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ--
'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
मेरे देश की संसद मौन है।
- धूमिल-
फूड डिलीवरी का इंतज़ार करते
महानगर की बारिश में कुछ बच्चे
अक्सर रात की भूख में
खिड़की से झांकता चांद रोटी समझ
दूध की कटोरी में डाल
खा जाया करते होंगे.-
पिता को दिन भर भगाती रही ये रोटी
माँ को भी घर में थकाती रही ये रोटी
कायदे से अब उनके साथ होना चाहिए
बच्चों को दूर शहर नचाती रही ये रोटी।-
भूख से बेहाल है पर दिल में है इंसानियत ।
रोटियाँ दो जून की मिल बाँट कर खाने लगे ।।-
किस्मत ने देखो कैसा कमाल आज कर दिया
निकली थी रोटी कमाने सर पे ताज धर दिया-
खो गया बचपन कहीं दो जून की रोटी में अब !
पूछते बच्चे खुदा से क्यों खफ़ा है जिंदगी !!-
वो जिस्म बेचकर रोटी लाती रही,
भीड़ उसे बदनाम करके, उसी का घर चलाती रही।
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ग़रीबी😥😢😥😢
सो जाते हैं वो कही भी क्युकी सब के पास मक्मल के बित्तर नहीं होते,
हम तो रोटी पैक देते हो थोड़ी खूसी होने पर जाकर उनके पूछो जिनको रोटी कभी नसीब नहीं होते,
हम तो बेवशी का आलम रोते रोज है जमाने के सामने पर उनके आंखो में कभी आशु नहीं आते,
हमें खाना अच्छा न लगे तो खाना छोड़ देते पर वो तो मिटी में भी स्वाद धुंड लेते,
हम अगर किसी चीज की ज़िद करे और न मिले तो मां बाप हमसे प्यार नहीं करते,
उनको तो बस रोटी की आस होती है मां बाप से और वो न मिले उने तो क्या बोले ये भी नहीं समझ पाते....
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