वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्त्तव्य मार्ग पर डट जावें!
जिस देश-जाति में जन्म लिया, बलिदान उसी पर हो जावें!-
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है
एक से करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत, देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान, हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद, आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है देखना है जोर कितना बाजू -ऐ कातिल में है-
वो क्रान्ति के अग्रदूत थे,
जान हथेली पर ले कर चलते थे,
वो अपने सिर पर बाँध कफ़न चलते थे,
वो देश के वीर सीने में तूफ़ान लेकर चलते थे,
पर इन सबसे हमें क्या हमे तो आज़ादी मिल गयीं
भले ही गरीबी,लुट,बलात्कार,भ्रस्तचार,पूंजीवाद,जातिवाद से ना मिली
पर हम तो मज़े में जी रहे हैं अंग्रेज़ो से जो आज़ादी मिल गयीं
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ग़ुलामी की हवा में,
खुशबू आज़ादी की गयी मिल,
खड़े हुआ पराधीनता से लड़ने को जब,
भारतीय गौरव राम प्रसाद बिस्मिल।-
आज जन्मा है जो शोला क्रान्ति की महफ़िल में है,
वो नहीं बुझता कभी, अब डर कहां इस दिल में है।
खींच ली है इक लकीर अब हांथ पर जो मौत की,
क्यों डरूं मैं अब भला जब मौत मुस्तकबिल है!
कर चुका अंतिम दुआ अब रब से मांगू क्या भला,
ज़िंदगी की भीख ना चाही कभी "बिस्मिल" ने है।
मांगता अहल-ए-वतन की ज़हन में थोड़ी जगह,
गर करें वो याद कभी क्या क्या किया बिस्मिल ने है।
ज़िंदगी निसार मुल्क पर कर चुका कबका भला,
अब तसल्ली होगी गर मेरी याद हर इक दिल में है।-
न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना
करुँ मैं देश की सेवा पड़ें चाहे करोड़ों दुख
अगर फिर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना
रहे अनुराग हिन्दी से, पढूँ हिन्दी लिखूँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढ़ना खाना
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना
लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना
नहीं कुछ भी असंभव है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना
_ अमर बलिदानी रामप्रसाद 'बिस्मिल'
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खौफ से जिनके गोरे भी छिपे हुए रहते थे बिल में
जैसे शार्क के डर से छिपे हो जाकर गहरी झील में
चल रही लौह पथ गामिनी लूटकर काकोरी में तुमने
दिखा दिए साहस है कितना रामप्रसाद बिस्मिल में
🙏 पं. रामप्रसाद बिस्मिल🙏-
वो कर गए कुर्बान अपनी जान
के मुल्क आजाद हो जाए...
पर... अब हमें क्या हम कुछ नहीं बोलेंगे,
चाहे मुल्क बर्बाद हो जाए...-
दूर रह पाए जो हमसे
दम कहाँ मंजिल में है
सर फरोशी की तमन्ना
अब हमारे दिल में है,
🙏
रामप्रसाद बिस्मिल
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