Nitish Chauhan   (नितिश चौहान)
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Joined 14 November 2019


Joined 14 November 2019
YESTERDAY AT 11:15

हक़ीक़त का रहा प्यासा ज़माना
गले से सच उतर पाता नहीं है
वहीं से देखना है हम सभी को
जहाँ से कुछ नज़र आता नहीं है

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24 JUN AT 12:18

आसमानों में छिप रहा है जो नमी जैसा
बरसे तो मैं बिछ जाऊंगा ज़मीं जैसा

हज़ार मसअलों में दम भरा हुआ लेकिन
असल रहा है हमेशा ही बेदमी जैसा

आशियाने में उजाला भी है अंधेरा भी
फिर भी महसूस हो रहा है कुछ कमी जैसा

सोचकर इतना भटकते हैं इस ज़हां में सब
मिलेगा एक दिन हमें भी तो हमीं जैसा

ये वक़्त का ही तक़ाज़ा है या गरज अपनी
हरेक शख़्स हो गया है लाज़मी जैसा

एक तासीर दो घड़ी भर रहती ही नहीं
मिज़ाज हो गया मौसम का आदमी जैसा

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12 JUN AT 20:21

*हादसा*

बिना किसी आहट के आना,
किसी हादसे का हो जाना,
हादसे होते हैं होने के लिए,
छोड़कर अवशेष रोने के लिए,
हादसे तोड़ कर रख देते हैं,
इंसानों को, ज़ुबानों को, देश को,
और दिखला देते असली भेष को,
व्यथित, हादसे से कोई चिंतित होता है,
अपना अंग गंवाने वाला बस रोता है,
कोई सहमा हुआ नहीं कुछ कह पाता है,
और कोई बनकर गिद्ध उसपर मंडराता है,
लेकर देवरूप, पर सच में राहु-केतु,
करता ख़ूब जतन अपनी उर-तृप्ति हेतु,
यही हादसा राख मनुजता की कर देता,
यही हादसा गिद्धों से करुणा हर लेता।

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4 JUN AT 14:43

People naturally seek comfort
and writing gives me comfort.

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4 JUN AT 12:14

तन्हाई का रास्ता, यह भी ख़ूब कही
तन्हाई कैसी जो तन्हा ऊब रही
किसे पता कि तन्हाई तन्हा होती है
तन्हा ही हँसती है, तन्हा ही रोती है
रहे रास्ते तन्हा और मुसाफ़िर तन्हा
पहुँच न पाये रहे उम्रभर आख़िर तन्हा
लेकिन तन्हाई ने साथी ख़ोज लिया था
कभी रास्ते, कभी मुसाफ़िर संग चली थी
उठी भोर-सी और सांझ के संग ढली थी
मज़ा साथियों का जमकर ही रोज लिया था
तन्हाई का रहा किसी से सदा वास्ता
कैसे कह दूँ तन्हाई का जुदा रास्ता
तुम्हीं बताओ तन्हाई को वारा किसने
पथ को और पथिक को तन्हा मारा किसने
पथ की और पथिक की हस्ती मर जाती है
पर तन्हाई कहीं और घर कर जाती है
ऐसे घाट बदलने वाले का क्या अपना
यही रास्ता तन्हाई का – झूठा सपना

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3 JUN AT 12:16

अथक जतन किये हर संभव,
नहीं मेरे भाग्य-दीप जले।
हे देव! तेरे नित वंदन से,
मेरी करुणा के गीत भले।

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2 JUN AT 13:35

चली गई उस रात उदासी
छोड़ हमारी हस्ती बासी
तारों के उस आसमान को
देख रहा था आँख टिकाकर
दिन में थे आँखों से ओझल
किन्तु रहे वे उसी जगह पर
और कहाए कि छिप जाते।

(पूरी कविता अनुशीर्षक में)

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31 MAY AT 9:51

Meaningful pursuits make life seem short and very fast moving;
Idle pursuits make life seem long and almost stable.

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29 MAY AT 16:05

hopes





disappointments.

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27 MAY AT 9:39

remembering you and visualising your soothing visage.

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