Nitish Chauhan   (नितिश चौहान)
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Joined 14 November 2019


Joined 14 November 2019
10 HOURS AGO

आसान बहुत लगता है पर होता बिल्कुल आसान नहीं
वक़्त बताता है सबकी, अपनी कोई पहचान नहीं
अपनी ही बनाई धारणाएँ तोड़ कर चलना
किसी वीरान रस्ते से निगाहें जोड़ कर चलना
किसी मुश्किल से भिड़ जाना, बिना समझे, बिना जाने
कोई परिणाम पा लेना, बिना संकल्प को ठाने
सभी कुछ झेल पाना या सभी कुछ ही बयाँ करना
सभी को साथ ले लेना, सभी को ही ख़फ़ा करना
भरम अपने बनाए से, रहता कोई अनजान नहीं
आसान बहुत लगता है पर होता बिल्कुल आसान नहीं

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1 MAY AT 13:28

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25 MAR AT 18:19

छाई रहे उमंग, रंग में भंग न होवे
छाए मेल-मिलाप, कोई भी तंग न होवे
आए होली 'बरस-बरस' जीवन में हर दम
ताकि जीवन का फीका यह रंग न होवे

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24 MAR AT 9:25

"रंग की अभिलाषा"

चाह नहीं मैं अपने कारण कोई झगड़ा करवाऊँ
चाह नहीं बन ढाल किसी की बूढ़ी रंज़िश निबटाऊँ
चाह नहीं अश्लील कृत्य का काला टीका लगवाऊँ
चाह नहीं मैं अपने नाम पर मद्य का सेवन करवाऊँ
मुझे तभी तुम हाथ लगाना, निश्छल मन, हो बुद्धि-विवेक
प्रेम भाव से पूरित-हर्षित करो सभी का रंगाभिषेक।

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22 MAR AT 9:53

जल तुम हो कर रंगहीन
जीवन में रंग भर देते हो
झुलसी तप्त ज़िंदगी को
फिर से शीतल कर देते हो
नदिया, सागर, उत्स्रुत कूप,
धरती की पहचान हो
सागर से उठ नभ गति करते
तुम मेघों के प्राण हो
तुम से धरती रंग सजाती
कर शृंगार मुदित होती
जन-मानस को पोषित करती
तुम पर ही आश्रित होती
तुम बिन काज न कोई होता
आवश्यक संसाधन हो
पंचभूत के एक तत्व
अनमोल प्रकृति का धन हो
आवश्यक है शुद्ध संजोएँ
करें उपभोग, समझ धन को
करें निरंतर संरक्षण और
जीवन दें आगत जन को।

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12 MAR AT 11:42

आखिर सी ए ए ने अपनाया कानूनी रूप
मिथ्याचारी, भ्रामक सब नेताओं को दो टूक

यह कानून नहीं नागरिकता हरता है
फिर भारत का वासी इससे क्यों डरता है

अब तक जितना देखा उससे समझ में आया
कुछ लोगों को झूठे नेता ने भड़काया

वो जो हर पल ताक रहे हैं बस मौके को
मत खाना तुम उनके दिखलाए धोखे को

उनको तो निज वोट बैंक से सरोकार है
कुर्सी का खेला मानों एक व्यापार है

यूँभी तो सीमावर्ती प्रदेशों का है हाल
घुसपैठों के चलते बेशक़ जीना है बेहाल

सी ए ए विरोध से पहले है ये बहुत ज़रूरी
घुसपैठों को शय देना है यह कैसी मजबूरी

क्या इनके ही दम पर शासन, प्रश्न खड़ा है
राष्ट्र और सत्ता में बोलो कौन बड़ा है

मैं समझाऊँ तुमको क्यों, मेरी मत मानों
ख़ुद पढ़िए कानून, सत्य क्या है, ख़ुद जानों

जो भारतवासी है वो क्यों भय खाएगा
धर्म नागरिकता के आड़े क्यों आएगा

सब धर्मों के लोगों! इसका स्वागत करिए
झूठों, मक्कारों की बातों से मत डरिए

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6 MAR AT 15:47

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28 FEB AT 16:06

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी– "ई डी के समन का सम्मान करना ही होगा!"

बड़े दिनों से लंबित था, उस पर आया फ़रमान
ई डी के समन का करना ही होगा सम्मान

एस सी के आदेशों की जो करता नाफ़रमानी
अपनी हठ और ढीठपने के चलते होगी हानि

अब कोई भी ई डी को समझेगा नहीं मज़ाक
अब एस सी भी साथ-साथ ही देगा उसको नाप

कारोबारी, अभिनेता, नेता, मंत्री, सरकार
एक नागरिक तक ही समझे वो अपना अधिकार

अब आगे से कथित समय पर होना होगा पेश
नहीं चलेगा काम भेज कर अपना एक संदेश

अब उन मक्कारों की शायद होगी नाक नकेल
जो समझे थे ई डी, सी बी आई है बस खेल

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2 FEB AT 10:15

ज़िन्दगी यूँ ही नहीं मिलती,
ज़िन्दगी में कुछ भी यूँ ही नहीं मिलता।
कुछ उपहार होता है,
कुछ उधार होता है;
ज़िन्दगी का गणित
इस सूत्र के बिना नहीं चलता।

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23 JAN AT 17:53

तुमसे नहीं कोई शिक़वा है
ना ही कोई हमें शिक़ायत
तुमको नहीं ज़रूरत मेरी
लेकिन हमें रहेगी चाहत
उस अंतिम क्षण तक जीवन के
जब तक मुझमें है अल्फ़ाज़ी
हमदम मेरे, हरदम मेरे
जायज़ है तेरी नाराज़ी...१

नया नहीं कोई अफ़साना
वही पुराना दिल दीवाना
तुझमें जो सांसें भरती है
मुझमें बसती वही कहानी
मैंने कभी नहीं ठानी फिर
जीत-हार की कैसी बाज़ी
हमदम मेरे, हरदम मेरे
जायज़ है तेरी नाराज़ी...२

हर पल मन में तेरी यादें
बातों में बस तेरी बातें
जब भी अपना ज़िक्र करें
लब मेरे गीत तुम्हारे गाते
रोम-रोम में रमने वाली
हाँ करता हूँ मैं हाँ, हाँजी
हमदम मेरे, हरदम मेरे
जायज़ है तेरी नाराज़ी...३

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