फिर से कोशिश करते हैं!
जिन राहों से गुजरे थे,
उनसे पुनः गुजरते हैं।
(Read in caption.)-
फिर से कोशिश करते हैं
जिन राहों से गुजरे थे
उनसे पुनः गुजरते हैं
स्थिति-परिस्थिति के आगे
हर दम झुका नहीं जाता
जब तक सांसें साथ रहें
यूँ ही रुका नहीं जाता
गिरना नियति क्यों मानें
उठते, और उभरते हैं
फिर से कोशिश करते हैं
जिन राहों से गुजरे थे
उनसे पुनः गुजरते हैं-
यह राह नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै
भाई भी बनाना है और जां भी गंवानी है-
फिर पछताए होत क्या,
जब चिड़िया चुग गई खेत...
पर अब कोई अफ़सोस नहीं होगा,
अब न तो इतनी चिड़िये ही बची हैं
और न ही इतने खेत।
खुशियाँ मनाओ!
अब चिड़िया खेत नहीं चुग पाएगी।
प्रकृति पर हमारी इस जीत की अनेकानेक बधाई।
– नितिश चौहान
(२०-०३-२०२५, गौरैया दिवस विशेष)-
क्षुब्धता से लबालब,
तन-मन, सब जीवन,
सहानुभूति पाता,
उसपर एहसान जताता,
कृतज्ञता भूलकर,
विषदंश पर फूलकर,
दंभ दिखलाता,
ईशदंड से आहत,
मैं ही क्यों, सब जग हो,
केवल इतना चाहता।
सारी शक्तियाँ लगी रहीं
मुक्ति में नहीं अपितु,
सारी आदमजात में
ख़ुद को पाने में।
अपने जैसे सबको,
शापित बनाने में।
वह शापित था,
एड़ी से चोटी तक,
देता भी क्या,
उसने शाप दिया,
खीझते-झुंझलाते,
जो अक्सर वह करता।
सच है कि
जिसके पास जो है,
उससे वही मिलता।-
यूँ ही नहीं हमेशा सच से दुनिया घबराती है
एक मलंग से मठ वालों की सत्ता हिल जाती है-