इंसाफ़ की डगर पर, ऐ जज दिखाना चल कर
बैठा हुआ है कब से, तू भेष क्यों बदल कर-
*एक ग़ज़ल*
तिश्नगी जारी रहेगी देर तक
हाँ, सुखनकारी रहेगी देर तक
तुम अंधेरों में बराबर साथ दो
रौशनी भारी रहेगी देर तक
हो सके अपना गिरेबां देखिये
और ख़ुद्दारी रहेगी देर तक
दोस्तों को आजमाना छोड़ दें
देखना यारी रहेगी देर तक
ये अना है, पर ख़ुदा तो है नहीं
आपसे हारी रहेगी देर तक
आग पर ठंडी 'नितिश' हो जाएगी
एक चिंगारी रहेगी देर तक-
एक तथाकथित अहिंसा के फर्जी पुजारी ने अहिंसा का ऐसा मज़ाक़ बनाया था कि लोग सदियों तक उसका दुष्परिणाम भोगने के लिए मजबूर हो गए।
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आसां नहीं यक़ीनन
उन पर यक़ीन करना
जिनका यक़ीं हमेशा
बस दीन में रहा है
नीति, नीयत-ओ-फ़ितरत
सब दीन के मुताबिक
इस हाल का तरीका
बस दीन में रहा है-
*स्वस्थ संवाद*
पर संवाद तो होता है, विवाद-प्रतिवाद से परे एक स्वस्थ संवाद, जिसमें रूबरू दो ज़ुबानों से नहीं, एक ही हस्ती के भीतर छिपे मन के दो रूपों के मध्य बिना ध्वनि के शब्दों के माध्यम से वार्तालाप की एक अद्भुत प्रक्रिया पूर्ण होती है। मन के एक रूप में तुम और दूसरे में मैं। हाँ! तुम पहला रूप हो हमेशा से ही, उसके बाद मेरी बारी आती है। इस संवाद में वो सब बातें करी जाती हैं जो करी जा सकती हैं और उन सभी बातों को भी यथोचित स्थान मिलता है जो संभवतः प्रत्यक्ष रूप से नहीं करी जा सकती हैं। विश्वास है कि इस प्रकार का संवाद उस ओर भी होता होगा। इस स्वस्थ संवाद का अपना सुख है।-
ये अदब की महफ़िलें हैं, कोई मैख़ाना नहीं
जो छिपा, भीतर ही रखना, सामने लाना नहीं
देख लो हर एक मंज़र को निहायत ग़ौर से
फिर मिलो तो ये न कहना, हम ने पहचाना नहीं
छोड़ देते हैं भरोसे दिल को उस के हाल पर
ख़ूब तड़पा है, उसे अब और तड़पाना नहीं
मत करो शिक़वा-शिक़ायत साहबों के सामने
फैसला हक़ में बहुत आसान करवाना नहीं
टूटती है शै, मुताबिक दाम मिल जाता मगर
आदमी के टूटने का कोई हर्जाना नहीं
इन ख़याली जन्नतों की भी हक़ीक़त है यही
नाम पर फ़ितना मचाना और पछताना नहीं
रास्तों से रास्ते भर मंज़िलों की बात की
मंज़िलों ने रास्तों का हाल तक जाना नहीं
इन बदलते रब्त की जुर्रत 'नितिश' अब सोचिए
कह रहे हम को फँसा कर यार घबराना नहीं-
तुमसे शुरू हुई जो बातें,
वही शेष, बाकी छूमन्तर ।
ऐसा केवल मुझ तक ही है,
या उस ओर भी होता होगा ।
जितना कुछ भूला मन मेरा,
क्या उसका भी खोता होता ।
कैसा प्रश्न हुआ बेढंगा?
जिस में तर्क नहीं है कोई ।
बारिश की नन्हीं बूंदों में,
यूँ भी फर्क नहीं है कोई ।
अब बतला मन ! क्या कहता है,
जो मुझसा है, मेरा ही है,
उसकी व मेरी बातों में,
कैसे हो सकता है अन्तर ?-
सचमुच हम बेईमान हैं। हम जानते-बूझते हुए भी अपने से, दूसरे से और समय से बेईमानी करते हैं। हम डंडे खाने के ही हकदार हैं और वे डंडे हम दिन-प्रतिदिन खाते हैं, रोते-बिलखते, कभी स्वयं को, कभी दूसरों को, कभी भाग्य और कभी समय को कोसते हुए फिर से एक नई बेईमानी करने में जुट जाते हैं। यह सब खुली आँखों से होता है, सब कुछ देखते हुए। हम अँधे नहीं, बेईमान हैं।
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*आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ*
राष्ट्र-हितों के लिए आप हर सम्भव करते
'राष्ट्र प्रथम' का भाव हमेशा दिल में भरते
बन प्रधान सेवक भारत का, करते निशदिन काम
कई जगहों पर मिला देखने को जिसका परिणाम
जिनकी मंशा गंदी, वो सब भिड़े आपसे
मन में जिनके चोर छिपा, वो चिड़े आपसे
देश द्रोहियों से रहता छत्तीस का नाता
भ्रष्टाचारी जो भी हो उनको भय खाता
अब भी काम बहुत हैं बाकी, लेकिन है विश्वास
भारत के हित हेतु करवाओगे ही बिल पास
राष्ट्र-हितों से बड़ा कोई संकल्प नहीं है
संकल्पों का दूजा कोई विकल्प नहीं है
पूरे करिए काम ज़रूरी, है यही इच्छा
विकट समय ही होती सच की सदा परीक्षा
इस हेतु हैं शुभकामना बारम्बार अनेक
अपने शुभ हाथों से करते रहिए कारज नेक
जन्मदिवस हो मंगलमय, हितकारी व शुभकारी
रहे आपका सिक्का सब सिक्कों पर भारी-
ख़ुश रहने में लगता है
ख़ुशियों की वजह
जो लाए कोई ख़ुशी
और बनाए
ख़ुशनुमा माहौल।
जो भी करता
बेवजह ही
ख़ुश रहने की पैरवी
सच में वह उड़ाता
ख़ुशियों की मखौल।-