मैंने बारिश में भीगना चाहा
चौक में जंगल उग आया
बारिश में क्या था ये जानना कौतूहल था
तो एहसास में भीग कर ही
प्रेम कर लिया मैंने ..
..
मुझे चाँद छूना था
रात की सीढ़ी चढ़ सफ़र पे निकली
हाथ कुछ तारे लगे
धरती पर पहुँचते ही वो जुगनू हो गए
प्रेम कल्पना है कोरी ..
..
प्रेम का हक़ीक़त से कोई वास्ता ही नहीं।
-
दिन की रौशनी में
हँसते मुस्कुराते चहरे
रात के आँचल में लिपटते ही
क्यूँ बन जाते हैं
दीवारों पर रेंगते
जिस्म पिपासु साए...
घात लगाए
दबोच लेने को आतुर
नोंचने पर आमादा
हर वह जिस्म
जिसमें हो हरारत
कच्चा, पक्का, जीवित, मृत...
इन निशाचरों की बदबू में
क्यों घुली मिली सी होती है
किसी अपने की महक
अक्सर...-
बिछड़ गए हैं सभी साथ निभाने वाले
सो मुझे नींद दे, ओ रात बनाने वाले ।
जो ख़ुदा हो तो अबके समझ जाओ खुद
हम कोई ज़ख्म नहीं तुमको दिखाने वाले ।।-
इक हँसी लिए
अपने लबों पर,
छुपा कर अपनी
हर तड़पन को,
कर गुमराह हर
इक आंसू को,
उस लम्हे बस
उस प्यारी सी,
मुस्कुराहट को,
दिल भरने तक,
महसूस करके
खुश होने को,
तड़प रहा हूँ मैं...
(see caption)-
नाराजगी अब खुदसे होने लगी है
उसकी वफ़ा ओर मेरी खामोशी
हर पल खटकने लगी है
यूँ घुट घुट कर जीना
शायद अब मुझको उसका दिल
तोड़ने की सजा मिल रही है-
धुँधला सा चाँद टंगा है आसमान पर
कोई ज़मीन का काँच साफ़ कर आओ
सारे तारे चमक कर सो गये
कोई बादल की घनी रज़ाई हटाओ
क्या वजूद है हमारा ख़ुदा के सामने
कभी ख़ुद को ख़ुद से दूर तो ले जाओ
कब तक शब्दों से दुनिया देखोगे हर्ष?
कभी तो दुनिया से शब्द ले आओ-
फूड डिलीवरी का इंतज़ार करते
महानगर की बारिश में कुछ बच्चे
अक्सर रात की भूख में
खिड़की से झांकता चांद रोटी समझ
दूध की कटोरी में डाल
खा जाया करते होंगे.-
इश्क़ लिखकर रात काटी, इश्क़ पढ़ कर रात काटी
इश्क़ जी कर रात काटी, इश्क़ मर कर रात काटी-
क्यों आ जाती है संवाद हीनता
अचानक रिश्तों की दहलीज पर,
गायब सी हो जाती हैं बातें
कुकुरमुत्ते सरीखे उग आते हैं न
जैसे किसी ने चुप्पी का बीज बो दिया हो
पहले तो यूं उगते थे शब्द
कि बन जाती थीं कविताएं हर मुलाकात पर
ऐसे गुम हो गई तुम्हारी छन की आवाज
जैसे दरवाजों की बैठकें
चौपालों पर होती चर्चाएं
रातों की नींद
और नींद में बनते बिगड़ते सपने
लगता है कविता से एक दिन
भाव भी मर जाएगा
पर कैसे हार मान लूं मैं
मुझे देखना है फिर से
उन जंगलों में पलाश का खिलना.-