शायद वो सावन भी आए
जो पहला सा रंग न लाए
बहन पराए देश बसी हो
अगर वो तुम तक पहुँच न पाए
याद का दीपक जलाना
भैया मेरे, राखी के बंधन को निभाना
भैया मेरे, छोटी बहन को ना भुलाना
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बनाई नाव उसने तो खिवैया भी वो भेजेगा।
तेरी आशा का कलयुग में कन्हिया भी वो भेजेगा।
न हो मायूस मेरी बिटिया ,तू सुन ले बात ये मेरी ...
सजाई उसने है राखी तो भइया भी वो भेजेगा।।-
बहन
जो बाप की तरह डांटती है ।
माँ की तरह प्यार करती है ।
दोस्त की तरह हमेशा साथ निभाती हैं ।
और एक बहन ही हैं साहब ,,
जो अपने भाई के लिए
दुनिया से लड़ जाती है ।
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नेह की मिठाई और सम्मान का तिलक
ये त्योहार हर परिवार में सम्पन्न होता है
मैं ही नहीं पूरा संसार ये कहता है
खुशनसीब है वो भाई जिसे कलाई पर अपने राखी नसीब होता है..
निष्ठा की आरती और प्रेम का उपहार
बहन का प्यार तो भाई के आँखों में दिखता है
ये बंधन ही है ऐसा की फ़र्ज़ दिखता है बस
कभी इसमें मजहब नहीं दिखता है..-
सँजोये प्यार धागे में देखो,
बहन का दुलार आया है,
एक भाई दूर है बहन दूर है,
उस पार से उसका दुलार आया है,
कही सुनी ना रहे मेरे भाई की कलाई,
हर बहन का भाई को प्यार आया है,
कैसा अनमोल बंधन है कलाई के धागें का,
कि उम्र बढ़े कद बढ़े सलामत रहे जहान उसका,
हर बहन की जुबा से भाई को ये प्यार आया है,
ये बंधन नही है सिर्फ़ एक धागें का,
रक्षाकवच के रूप में बहन का प्यार आया है,
सलामत रहे हर बहन के भाई की कलाई,
सलामती को रक्षाबंधन का त्यौहार आया है।-
बहना बोली भाई से,
ओर राखी बेचने वाले से।!
कोई लो अच्छी सी राखी,
भाई तू अपनी कमाई से!!
भाई मेरा वादा है तुझसे,
मुसीबत टालेगा तुझसे!
ये मेरी राखी की डोर,
संकट दूर ले जाएगा तुझसे!!
कभी सुनी ना रहे तेरी कलाई,
मेरी यही है गुजारिश भाई!
बाँधू में रक्षा रूपी धागा,
साथ मे लाई हूँ मिठाई!!
भाई मेरे भूल ना जाना,
रक्षा मेरी हर वक़्त करना!
जिंदगी के किसी मोड़ पर,
तू मुझको भुल ना जाना!!-
माखन मिसरी खीर चूरमो स थाल सजाई
मोर पंख सूं अपणे हाथां स राखी बणाई
सुभद्रा रा बीरा थे बेगा आइजो जी।
पीताम्बरी मंगाई थारा जोड़ा भी सिलवाई
नाप क देखो जी अंदाजे ही बणवाई
नानी बाई रा बीरा थे बेगा आइजो जी।
सांझ होवण लागी अब तक सूनी थारी कलाई
म तो बोल दी सगला न म्हारा बीरा आवेला
पांचाली रा बीरा थे बेगा आइजो जी।
म्हारा श्याम सलोना बीरा बेगा आइजे रे.....-
राखी री लाज निभाइजे रे।
बीरा म्हारा थास्यु म्हाको पीर रे।
निरखु थाम्ह बाबोसा री परछाई रे।
बहण री खातिर मुरलीधर बण जाइजे रे।
पिळी लुगड़ी औढार म्हारौ माण बढ़ा दीज्ये रे।
जद बुलाऊँ रेसम री डोरी स्यु खिंचयो आइजे रे।
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