Aditya आदित्य   (Adi)
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I write to discover myself. Read along to explore my discoveries.
Joined 30 November 2017


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Joined 30 November 2017
27 SEP 2018 AT 13:09



वो बंद किवाड़ थारे हिवड़े रो
आपणी छत सू देखूं कदै खुलो दीख जावे।
बेरो ह मन्ने चाभी ताईं छेद ह जो
तू झांकै वा मे से म्हारे छत री ओर।
आंधी चाली सांझ न थारे कीवाड़ न खूब बजाई
जद थारी याद म मेरो जी भारी हो रयो थो।
भीतर सू आगळ थे दे राख्या हो
पण थे जाणो बो कीवाड़ भी खुलणो चाय
सांय-सांय जद हवा चालै अर
चीं-ची कर रोए वो बेबस बंधा किवाड़।
धूल स चौक पूर रख्या हो
मकड़ी रो जाळो लटकै जइयां बंदनवार
सूख्योड़ा पत्ता बिछ्या स्वागत म
बस खोल क देखो वा कुंडी भीतर स....
कुंडी बखत री....
जो कदै पाछो कोनी आवेला।



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31 AUG 2018 AT 1:26

"मां आज इतवार छै ना पण फकीर बाबो कोनी आयो दीखै?"
काला चोगा पैर्या, झोला लटकाया, सफेद दाढ़ी, टूटा दांत आलो लंबो बाबो हर इतवार न आठ बजता ही आ जातो। आवाज लगातो "देवे बी को भी भलो, ना देवे बी को भी भलो"।
छातो, डंडो रख क उकड़ूं बैठ जातो। द्वार पै आस सूं बंधी बी की बूढी धसी आंख्यां चमक उठती जद म हाथ मा प्याला लेर जातो अर बी की झोली मा घालतो.....मुट्ठी भर अणाज।
बचपन री बो याद अचानक आई।
"कठै आवे फकीर बाबो इब। वृद्धाश्रम मा बांट आ तेरो मन करै तो....एक बोरी अणाज।"

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30 AUG 2018 AT 23:05

माखन मिसरी खीर चूरमो स थाल सजाई
मोर पंख सूं अपणे हाथां स राखी बणाई
सुभद्रा रा बीरा थे बेगा आइजो जी।

पीताम्बरी मंगाई थारा जोड़ा भी सिलवाई
नाप क देखो जी अंदाजे ही बणवाई
नानी बाई रा बीरा थे बेगा आइजो जी।

सांझ होवण लागी अब तक सूनी थारी कलाई
म तो बोल दी सगला न म्हारा बीरा आवेला
पांचाली रा बीरा थे बेगा आइजो जी।

म्हारा श्याम सलोना बीरा बेगा आइजे रे.....

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28 FEB 2020 AT 15:58

खाली ज़मीन नहीं दिखती
खुला आसमान ढूँढते हैं।
धूल भरी फिज़ा में
मौसम बहार ढूँढते हैं।
नज़र उठा कर देखते हैं जब
मंज़र देख जाने क्यों झुक जाती है।

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26 FEB 2020 AT 1:06

रे परदेस जातो बादलियो
म्हारो भरतार बठै खटे छै घाम म
थे वा के ऊपर छत्तर बण जाज्यो।
म्हारा नैणां रा पाणी ले जा क
थे बरसो, वा का पग पखारज्यो।
बैरण चाँद पर थे घूँघट बण जाज्यो
जो निजर डारै म्हारे बालमा पे।
इतनी सी तो सुणता जाज्यो.....।

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22 JAN 2020 AT 15:51

चिन्ता न करो,
सँभाल कर रखा है
अब तक
ये तन
तुम्हारे लिए।

हालांकि,
मन
अर्पण कर चुकी किसी को,
मगर,
इस पर तो ऐतराज़
नहीं होगा ना
तुम्हें।

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22 JAN 2020 AT 3:15

बेड़ियाँ बाँधता है खुद ही,
फिर अपनी बेबसी पे रोता है।

मालूम पड़े तो बताना
ऐ दिल! आखिर चाहता क्या है?

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22 JAN 2020 AT 2:58

तीन घंटे हो गए, पता भी न चला
सोचा न था यूँ मदहोश होंगे कभी।

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22 JAN 2020 AT 2:53

तुमने तो कह दिया यूँ ही और फिर चल दिए
हम ही उसे कलमा समझ इबादत करते रहे।

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22 JAN 2020 AT 2:35

मेरी हँसी तुम्हें पसंद थी ना,
रूठ गई है तुम्हारे जाने से
कुछ दिन इसे तुम रख लो ना।

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