"मज़ा : ज़िन्दगी का"
'अकेले' होने का भी अपना मज़ा है न किसी के रुठने का डर और न किसी के मनाने की फ़िकर
'बेकार' होने का भी अपना मज़ा है न किसी के अपनाने की खुशी और न किसी के ठुकराने का डर
'अंधा' होने का भी अपना मज़ा है न किसी को दिखने की वजह और न किसी को देखने की चाह
'नासमझ' होने का भी अपना मज़ा है न किसी को ढ़गने की खुशी न ढ़गाने का गम
'मूर्ख' होने का भी अपना ही मज़ा है न खुद को बड़ा समझने का गुरुर न दुसरो को छोटा समझने का शुरुर
'दूरी' का भी अपना मज़ा है न पास आने की खुशी न गम क़रीब न होने का
'खोने' का अपना ही मज़ा है न हर दिन उसे देखने की प्यास न उसे पाने की आस
'हारने' का अपना ही मज़ा है न जीतकर लोगों की जलन और हारने वाले की बद्दुआ
'शांत' रहने का अपना ही मज़ा है न जलने की तपिश और न लड़ने की कशिश
'भूलने' का अपना ही मज़ा है न याद करके रोना और अपने अतीत के लिए आज को खोना
'माफ़ करने' का अपना ही मज़ा है न सज़ा देने का पछतावा न ऊपर वाले का बुलावा
'इशारों' का अपना ही मज़ा है न कहने की ज़रूरत न करनी पड़े कोई हड़कत
'कटाक्ष' का अपना ही मज़ा है न करनी पड़े बात और न ज़रूरी हो मुलाकात
'सब्र' का अपना मज़ा है खुद पर बना रहता है एतबार और कम भी नही होता प्यार
'सिद्दत' का अपना ही मज़ा है हद की कद भी दिख जाती है और बनी रहती है आस
'इबादत' की बात न पूछो खुद से दूर भी नही और रहते है हरदम रब के पास
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आँखें पढ़ो और जानो मेरी रज़ा क्या है.!!
हर बात लफ़्ज़ों से बयाँ हो तो मज़ा क्या है..!!-
करते हैं बात तो बातों का मज़ा लीजिये
मौन हो रात तो रातों का मज़ा लीजिये
कोई मौसम नहीं होता इश्क़ की बारिश का
हो रही बारिश तो बरसातों का मज़ा लीजिये-
रुक जाती कल रात 5 मिनट और
कर लेते कुछ बात 5 मिनट और
आ रहा था तुझ संग भीगने का मज़ा
होने देती बरसात 5 मिनट और-
कभी बरसात का मज़ा चाहो
तो इन आँखों में आ बैठो
वो बरसों में कभी बरसती है
ये बरसों से बरसती हैं-
सही मायने में इश्क़ एक नशा है
पर ग़म ग़लत करने का
अपना ही एक मज़ा है-
आसमान में चढ़ा कर,
पैरों तले ज़मीन खिसका देते हैं
कुछ लोग अधर में लटका के,
तमाशे का मज़ा लेते हैं....-
इश्क़ का मज़ा...
इतवार के बिना कुछ भी नही...
इश्क़ यारो...
ऐतबार के सिवा कुछ भी नही...
उनके मासूम से...
चेहरे पे फिदा कितने है...
और उन्हें खबर...
अखबार के सिवा कुछ भी नही...
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चलो सो जाता हूँ अब मैं,
किसी के ख़्वाबों में जो 'आना' है।
वो जो भूल गये हैं हमें,
उन्हें सोते-सोते जगाना है।
अभी तक उड़ा रखी है जिन्होंने नींद हमारी,
उन्हें भी तो उड़ी नींद का मज़ा चखाना है।
- साकेत गर्ग-