मैं मौन हो रहा हूँ और वो शोर कर रही है
पलकों की उठा-पटक घनघोर कर रही है
सो गया है बीच में जहां ये सारा का सारा
नशीली आँखें कुछ ऐसा ज़ोर कर रही हैं
क्या मजाल झपक लूँ एक पलक तनिक
शून्य सा सुन्न मुझे वो पुरज़ोर कर रही है
गहराइयों में डूबने को आतुर तो हूँ मग़र
आँखें उसके चंद्रबिंदु पर ग़ौर कर रही हैं
बारिश बह रही है और हवा बरस रही है
मदहोशी असर उसकी हरओर कर रही है
भूलभुलैया भी है और है नयनाभिराम वो
आँखों आँखों में रात को भोर कर रही है
'बवाल' हो तो हो, अब किसे फ़िकर यहाँ
मैं मौन हो रहा हूँ और वो शोर कर रही है-
केवल पृथ्वी एवं सूर्य के मध्य
चन्द्र की उपस्थिति ही
ग्रहण नहीं होती
ये तुम्हारे और मेरे
मध्य का मौन
भी ग्रहण ही है न?-
शब्दविहीन है
अवचेतन मेरा
भाषा अनभिज्ञ
जान पड़ रही है
और भाव विभ्रमित
जूझ रहे दैहिक स्तर
पर अव्यक्तता से
हिय आविर्भूत है
कृतज्ञता से,
सुख से, प्रेम से
क़लम मिथ्यालाप नहीं
करना चाहती,भाव
भावना मंद पड़ रही है
सुख सुख लग रहा है
और दुःख आनन्द
प्रेम प्रगाढ़ होता
जा रहा है
शायद.......
मन मौन को
पचा रहा है!!-
*मौन*
मौन ही ऊर्जा, मौन ही शक्ति
मौन से ही है ईश्वर की भक्ति।
मौन ही है चेहरे की आभा,
मौन से पूरी हो जीवन की अभिलाषा।
मौन ही कंचन, मौन ही चंदन,
मौन रह करे हम आत्म चिंतन ।
मौन से होवे हम एकाग्र चित्त,
तब खुले अंत:मन के चलचित्र।
मौन से ही हो ज्ञान का प्रकाश,
समस्त विश्व को मिले हमसे शकास।
मौन से हो बुरी ऊर्जाओं की समाप्ति,
तब होवे सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति।
मौन से बड़े बड़े युद्ध भी टल जाता,
एक दूसरे के प्रति में प्रेम भाव बढ़ जाता।
मौन है जीवन का एक अहम भाग,
इसमें होता है शांति का आभास।
मौन से हो निर्मल मन, बने कंचन काया,
मोह माया से परे हो जीवन की नैया।
मौन से ही डूबी नैया किनारे आ जाए,
तत्पश्चात पूर्ण हो जीवन का अर्थ और
हम इस भवसागर पार हो जाए।— % &-
मौन.....
जिसमें बाहरी कोलाहल
की गहन पीड़ा और
अन्तर्मन की असीम
शान्ति का विरोधाभासी
समन्वय रहता है ।।
बहुत ही व्यापक है
दायरा मौन का.....!!
यह व्यंग्य और आक्षेप से
कई गुना अधिक चुभता है ।।-
मंज़िल की ओर बढ़ते हुए ये कदम,
ना जाने क्यों अब पीछे भाग रहे हैं।
पहले तूफानों के शोर से डरे नहीं,
अब बहती हवा के मौन से कांप रहे हैं।-