दिल के जख्मों पर
मेहबूब के हाथों नमक लगे
आह , दर्द कितना सुकून भरा होगा-
खुदकुशी कर रहे है हर पल लम्हें इंतजार के,
मेहमां महबूब आने को है दिल के दरबार में।-
मुहाफ़िज़ इश्क़ के कईं हैं,
निभाते कितने हैं, ये भी पूछो ।
सफ़र सबको इसका ही तय करना है,
मंज़िल पाते कितने हैं, ये भी पूछो ।
चलो मान लिया, मुकम्मल भी हो जाता है !!
दर्द-ए-हिज़्र में रोते कितने हैं, ये भी पूछो ।
और ये क्या महबूब-महबूब लगा रखा है,
बेवफ़ा नाम देते कितने हैं, ये भी पूछो ।
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बेवफाईयों को उसकी जुदा होने नहीं दूँगा
मर जाऊँगा मैं, उसको बेपर्दा होने नहीं दूँगा
कुछ लोगों को अब मिरे इश़्क से घुटन होती है
सब्र करो तुम, मैं अब उनको ख़ुदा होने नहीं दूँगा
भरोसा करना तुम मिरी हर इक बात पर हँसकर
देर तो होगी, पर तिरा दिल ग़मज़दा होने नहीं दूँगा
घबरा गया हूँ मैं तिरी उस मुस्कान को ढूंढते-ढूँढते
रोना मत, तिरी मुस्कान को गुमशुदा होने नहीं दूँगा
तू मिरे दिल का हिस्सा है चाहे मान या फ़िर ना मान
गुनाह ख़ुद लूँगा, तिरी आँखों से अदा होने नहीं दूँगा
तुम्हें लेकर क्या-क्या नहीं सुनाया सबने मुझे "आरिफ़"
सुन लूँगा सबको, पर मैं ख़ुद को बेहूदा होने नहीं दूँगा
लिख लूँगा तुझे एक दिन "कोरे काग़ज़" पे अपने लिए
तुम मिरी हो, अब किसी और पर फ़िदा होने नहीं दूँगा-
मुझे पसंद है वो "महबूब"
जो तोहफे में देते हैं अपनी "महबूबा" को
कांच की चूड़ियां, फूलों के गजरे
और सुर्ख रंग के दुपट्टे।-
: पिला दे ज़ाम, अपने मेहफ़िल की
थोडे़ मसहूर, हम भी, हो जाए.....।
मगर...........,
शौख नहीं हमें, :
वो ज़हर,अपने महबूब को, देने की
जिसे, पी कर आप, चूर-चूर, हो जाए।।-
माना मोहब्बत से दूरी बना रखी है हमने
पर मोहब्बत का ज़ाम तो चखा हमने भी है।
हां मेहबूब अब साथ है नहीं हमारे
पर एक उम्र दीवानगी में बिताई हमने भी है।-
"इतनी भूमिकाएं तुम कैसे निभाते हो"
कभी सिखाते हो, कभी समझाते हो
डांट-फटकार कर माता-पिता बन जाते हो
जब होती है ज़रूरत मुझे, तब भाई का फर्ज़ निभाते हो
कभी अच्छे दोस्त बनकर सही राह दिखाते हो
जब लगती है दिल में चोट, तुम मलहम बन दर्द मिटाते हो
मेरे अकेलेपन को मिटाने, महबूब बन प्यार लुटाते हो
ना जाने इतनी भूमिकाएं तुम कैसे निभाते हो।-
OPEN COLLAB CHALLENGE
"मेहबूब"
मेहबूब आए यूं आंधी की तरह , तूफ़ान से चले गए ,
मोहब्बत लेकर आए थे और गम-ए-बरसात दे गए ।।-