"एक खत उस अजनबी के नाम"
मैं हर उस निगाह से वाकिफ़ हु, जो छिप छिप कर मेरा पीछा कर रही,
बेकार ही अपना वक़्त ज़ाया कर, ना जाने मुझमे क्या ढूंढ़ रही,
हाँ एक वक़्त था जब बेशूमार चाहा था उसे मैंने,
उसका साथ पाने को, दुनिया से लड़-भिड़ने का ठाना था मैंने,
अपने प्यार में धोखा खाकर, आगे बढ़ने का निश्चय लिया,
निरंतर मेहनत कर, सफल हो, अपनी ज़िंदगी आगे जीया,
एक इश्क़ जिसे बरसो पहले दफन कर दिया था मैंने,
सालों से यहीं रहते हुए भी कभी देखा नहीं उसे मैंने,
अब तो मुझे याद भी नही......
आखरी बार कब मिले थे हम,
कब साथ बैठ कर कोई गुफ्तगू किये थे हम,
तुम बेवज़ह यूं परेशान ना हो प्रिये,
मेरी सलाह से, आपसी हल निकाल सुलह करो।
दुसरों पर शक करना छोड़, स्वयं अपनी जिंदगी स्वर्ग करो।🙂
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