एक हम, एक आप, और ये ख़ुशनुमा रात,
बस यही तो है जिंदगी की सौगात।-
लो वो रिवाज़ भी शुरु कर दिया लोगों ने,
जब गंभीर हालत में हॉस्पिटल में पड़े रहने पर भी,
एक फ़ोन कर हाल तक नहीं पूछा करते।
अपना स्वार्थ निकलने तक बुलाया करते थे जो,
अब अपनों को शादी में पूछा तक नहीं करते।
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और कितना करीब रखने की तमन्ना रखते हो तुम,
देखो तुम्हारे शहर, मोहल्ले तक पहुँच चुके हैं हम।
अब दिल तक का रास्ता ज़्यादा दूर नहीं।-
इतने वर्षों में आज वह दिन भी आया,
जब दीपावली की चमचमाती रौशनी में भी
खुद को अकेला पाया।-
ज़रूरी नहीं कि नारी की रक्षा करने हमेशा ही श्री कृष्ण आये,
कभी कभी अपनी रक्षा के लिए खुद ही कृष्ण बनना पड़ता है।-
Which refreshes my inner soul
Brings smile and happiness entire day
And makes me feel contented....-
"एक खत उस अजनबी के नाम"
मैं हर उस निगाह से वाकिफ़ हु, जो छिप छिप कर मेरा पीछा कर रही,
बेकार ही अपना वक़्त ज़ाया कर, ना जाने मुझमे क्या ढूंढ़ रही,
हाँ एक वक़्त था जब बेशूमार चाहा था उसे मैंने,
उसका साथ पाने को, दुनिया से लड़-भिड़ने का ठाना था मैंने,
अपने प्यार में धोखा खाकर, आगे बढ़ने का निश्चय लिया,
निरंतर मेहनत कर, सफल हो, अपनी ज़िंदगी आगे जीया,
एक इश्क़ जिसे बरसो पहले दफन कर दिया था मैंने,
सालों से यहीं रहते हुए भी कभी देखा नहीं उसे मैंने,
अब तो मुझे याद भी नही......
आखरी बार कब मिले थे हम,
कब साथ बैठ कर कोई गुफ्तगू किये थे हम,
तुम बेवज़ह यूं परेशान ना हो प्रिये,
मेरी सलाह से, आपसी हल निकाल सुलह करो।
दुसरों पर शक करना छोड़, स्वयं अपनी जिंदगी स्वर्ग करो।🙂-
"इतनी भूमिकाएं तुम कैसे निभाते हो"
कभी सिखाते हो, कभी समझाते हो
डांट-फटकार कर माता-पिता बन जाते हो
जब होती है ज़रूरत मुझे, तब भाई का फर्ज़ निभाते हो
कभी अच्छे दोस्त बनकर सही राह दिखाते हो
जब लगती है दिल में चोट, तुम मलहम बन दर्द मिटाते हो
मेरे अकेलेपन को मिटाने, महबूब बन प्यार लुटाते हो
ना जाने इतनी भूमिकाएं तुम कैसे निभाते हो।-
बहुत गुरूर था ना तुम्हें, की हम तुमसे दूर नहीं रह सकते,
लो आज वो गुरूर भी तोड़ दिया हमने और
पहले से बेहतर भी जी कर दिखा दिया।-