नुमाइश में जा के बदल गइली भउजी
भईया से आगे निकल गइली भउजी
आयल हिंडोला मचल गइली भउजी
देखते डरामा उछल गइली भउजी.
भईया बेचारु जोड़त हउवें खरचा,
भुलइले ना भूले पकौड़ी के मरचा.
बिहाने कचहरी कचहरी के चिंता
बहिनिया के गौना मशहरी के चिंता.-
लोगों की भीड़ थी पर वहाँ मेला नहीं था,
गैरों के बीच में कभी अकेला नहीं था,
अब कुछ ऐसे टूट चुका हूँ कि बिखर गया हूँ,
कभी किसी ने मेरे जज़्बातों से ऐसे खेला नहीं था।-
हसरतों का मेला कभी खत्म ना हो।
हमारा प्यार यूँ ही दिनों दिन निखरता
रहे ये कभी कम ना हो।
दुनिया की नज़रों से बचाकर जो
हमने गुलिस्तां सजाया है।
वो कभी आंखों से
ओझल ना हो।-
पुस्तक मेले में
एक स्टाल पर
पड़ी एक किताब की आखिरी प्रति,
जिस पर पड़ी
नज़र
हम तीनों की एक साथ।
उन दोनों ने
लिखी अपनी प्रेम कहानी
और
कविताओं की वो अकेली किताब
है अब मेरे हाथ।-
ये जीवन एक मेला है
ज़रा गौर तो करना ,,,,,
दुःख-सुख का रोज खेला है
पल -पल बदलते चेहरे ,,
ये जीवन अलबेला है-
नही ईदगाह के हामिद के जैसा, मेरा तो कोई फ़साना था,
पर यारों के संग ले बना झुंड, मुझे मेला देखने जाना था।
उचक-उचक बन्दर संग बन्दरिया, का वो नाच सुहाना था,
हाँ याद है मुझको बचपन मे, मैं मेले का बड़ा दीवाना था।।
वो आसमान को छूते झूले, देख डरने का मात्र बहाना था,
जेब में थे जो दो रुपये मेरे, उसे जलेबी के लिए बचाना था।
वो रंग-बिरंगे, खेल-खिलौने, बस देख के मन बहलाना था,
हाँ याद है मुझको बचपन मे, मैं मेले का बड़ा दीवाना था।।-