तुझको कैसे लिख दूं माँ इतनी ताक़त नहीं कलम में मेरी
हूं मैं तेरा ही एक दरिया माँ तुझ बिन नहीं ये जिंदगी मेरी
मेरा छोटा सा प्रयास को आप (caption) में जरूर पढ़े-
समझाते समझाते जिसकी उम्र निकल गई
"पास" होना कितना जरूरी है,
"अफ़सर" बन जब दूर निकल गए "बच्चे"
अकेले बुढ़ापे में वो "माँ" समझ गई
सच मे "पास" होना कितना जरूरी है....-
माँ कहती थी
जब चिड़िया
धूल में नहाती है
तब पानी आता है।
माँ कहती थी
जब धूप में
बारिश होती है
तो चिड़ियों का ब्याह होता है।
माँ अक्सर कहती थी
रात को पेड़ सो जाते है,
फूल पत्तियाँ नही तोड़नी।
माँ ने न जाने कौन से
पाठ पढ़े प्रकृति के?
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----माँ-----
हमें फिर से गोद मे उठा लो ना माँ,
अब हमसे चला नही जाता इस गंदे संसार मे।
मुझे अपने सीने से लगा लो ना माँ,
बहुत रुलाया है दुनियाँ ने तेरे इस लाल को
(-पूरी कविता पड़ने के लिए कैपसंन को पढ़े-)
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ठोकरों से मुझको कोई डर नहीं लगता
ने संभलके चलना सिखाया है-
आँख खुलते ही तेरी सूरत का दीदार हो,
माँ तेरे पैरो को छूकर दिन की मेरी शुरुआत हो।
वक़्त पर खाने के लिए हर रोज़ वो टकरार हो,
थक हारकर जब आऊ रातों को घर अपने,
तेरे आँचल में प्यार की वो सुनहरी ख्वाब हो।
दुआ करूँगा परवरदिगार से अपने
ये सिलसिला यूँ ही निरंतर बरकरार हो।-
वो एक शब्द नहीं पूरा संसार है
जिसके बिना अधूरा हमारा परिवार है
वो है दूर्गा सी शक्तिशाली, काली सी गुस्सैल
पर लक्ष्मी सी गुणी और सरस्वती सी शीतल भी
वो जो बिना कहे सब जान लेती , सब पहचान लेती है
वो है हम फूलों की क्यारी सबसे न्यारी
वो है मेरी प्यारी माँ ।-
गर आना हो तो जिस्म से परे, मेरी रूह का सफ़र तुम करना
करनी हो मुहब्बत जो मुझसे, मेरी मां सी मुहब्बत तुम करना
मैं ज़िद्दी हूँ कुछ बातों में, दिल डरता है अक्सर रातों में
मेरी नासमझी पर,बेफिक्री पर, थोड़ा सा सबर तुम करना
करनी हो मुहब्बत जो मुझसे , मेरी मां सी मुहब्बत तुम करना
कभी सरदी में,कभी गरमी में, थोड़ी सख़्ती से,कुछ नरमी से
मेरे आने की,कुछ खाने की, बेबाक इक फिकर तुम करना
करनी हो मुहब्बत जो मुझसे , मेरी मां सी मुहब्बत तुम करना
मेरे सवालों में,मेरे ख्यालों में, बेमौज भटकते हालों में
कभी सुन लेना,कभी कह देना, बस वहीं पे बसर तुम करना
करनी हो मुहब्बत जो मुझसे , मेरी मां सी मुहब्बत तुम करना-
ना मस्जिद में ना मंदिर में
ना ही गुरुद्वारे में
सुन "माँ "
मेरी इबादत तो हैं
तेरे चरण द्वारों में.....
©कुँवर की क़लम से....✍️-
ये शब्द ही प्रमाण है के
कितना ब्यक्तिगत प्रेम होता है एक बच्चे को अपनी मां से,
जैसे मां को बांटना अपने अस्तित्व को ही बांट देता हो
और दूसरी ओर
कितना निस्वार्थ प्रेम होता है उस मां का
जो सारे संबंधों में बटने के बाद भी बस बढ़ता ही रहता है-