मैं अकसर मां को
कहता था,
मां आप रेशमी साड़ी
ना पहना करो।
मां पलटकर पूछती
क्यों रे तुझे मेरी रेशमी साड़ी
से क्या परेशानी।
मैंने मां को कभी नही बताया था
कि उनकी रेशमी साड़ी
के पल्लू से
मैं अपना मुंह
अच्छे से नही पोछ पाता था।-
जिस हिस्से पर
धूप पड़ती है
वह उम्मीदों से
भर जाता है।
हृदय के
दूसरे हिस्से को
मैं अक... read more
उसने कहा
बाल बहुत बड़े रखते हो
फिल्मों में काम करने का
कोई अधूरा सपना है क्या
मैंने कहा नही
लॉक डाउन है ना
सारे सैलून बंद है।
उसने हंसते हुए कहा
आग लगे ऐसे सैलून को।-
माँ कहती थी
जब चिड़िया
धूल में नहाती है
तब पानी आता है।
माँ कहती थी
जब धूप में
बारिश होती है
तो चिड़ियों का ब्याह होता है।
माँ अक्सर कहती थी
रात को पेड़ सो जाते है,
फूल पत्तियाँ नही तोड़नी।
माँ ने न जाने कौन से
पाठ पढ़े प्रकृति के?
-
मुझे पर्वत सा बनना है,
ऊंचा बहुत ऊंचा।
और तुम्हे?
मुझे पर्वत वर्वत नही बनना,
मुझे तो समंदर बनना
गहरा बहुत गहरा।
ओह्ह तो फिर हम
पहाड़ी नदी क्यों नही बन जाते है?
बहुत ऊंची लेकिन गहरी भी!-
बांध दीजिए
छोटी-छोटी
बच्चियों की
चोटियों में
रंगबिरंगे रिबन
ताकि यह दुनिया
फिर से रंगों से
भर जाए।-
माँ कहती थी
जब चिड़िया
धूल में नहाती है
तब पानी आता है।
माँ कहती थी
जब धूप में
बारिश होती है
तो चिड़ियों का ब्याह होता है।
माँ अक्सर कहती थी
रात को पेड़ सो जाते है,
फूल पत्तियाँ नही तोड़नी।
माँ ने न जाने कौन से
पाठ पढ़े प्रकृति के?
-
जब भी पुकारा मां को
हाथ पोछती हुई मां
दौड़कर आई
माथे पर हथेली रखी
सूती आँचल से मुंह पोछा।
अब जब पुकारते है ईश्वर को तो
उन्होंने भी मां की तरह ही
आना चाहिए....-
हम दुःखी को नही जानते
जानते है तो बस उसका दुःख।
दुःखी भी भला हमे कहाँ जानता होगा,
उसने बस जाना होगा
हमारे द्वारा दिया गया ढांढस।
दुनिया मे अभी भी बहुत कुछ बाकी बचा हुआ है
साझा करने के लिए...-
समाचार एक जैसे ही है,
बस शहर के नाम अलग है।
जैसे धर्म, सम्प्रदाय और जाति
अलग होने के बावजूद
दुःख एक से है।
अब इस दुःख में
खलल डालो
मेरे ईश्वर.....-