Sanjay Kumar Gupta   (संजय कुमार गुप्ता)
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Joined 1 May 2018


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29 MAY 2021 AT 22:32

मैं अकसर मां को
कहता था,
मां आप रेशमी साड़ी
ना पहना करो।
मां पलटकर पूछती
क्यों रे तुझे मेरी रेशमी साड़ी
से क्या परेशानी।
मैंने मां को कभी नही बताया था
कि उनकी रेशमी साड़ी
के पल्लू से
मैं अपना मुंह
अच्छे से नही पोछ पाता था।

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29 MAY 2021 AT 20:54

उसने कहा
बाल बहुत बड़े रखते हो
फिल्मों में काम करने का
कोई अधूरा सपना है क्या
मैंने कहा नही
लॉक डाउन है ना
सारे सैलून बंद है।
उसने हंसते हुए कहा
आग लगे ऐसे सैलून को।

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26 MAY 2021 AT 8:27

मुझे पर्वत सा बनना है,
ऊंचा बहुत ऊंचा।
और तुम्हे?

मुझे पर्वत वर्वत नही बनना,
मुझे तो समंदर बनना
गहरा बहुत गहरा।

ओह्ह तो फिर हम
पहाड़ी नदी क्यों नही बन जाते है?
बहुत ऊंची लेकिन गहरी भी!

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11 MAY 2021 AT 20:07

बांध दीजिए
छोटी-छोटी
बच्चियों की
चोटियों में
रंगबिरंगे रिबन
ताकि यह दुनिया
फिर से रंगों से
भर जाए।

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9 MAY 2021 AT 8:32

माँ कहती थी
जब चिड़िया
धूल में नहाती है
तब पानी आता है।
माँ कहती थी
जब धूप में
बारिश होती है
तो चिड़ियों का ब्याह होता है।
माँ अक्सर कहती थी
रात को पेड़ सो जाते है,
फूल पत्तियाँ नही तोड़नी।
माँ ने न जाने कौन से
पाठ पढ़े प्रकृति के?




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3 MAY 2021 AT 18:00

जब भी पुकारा मां को
हाथ पोछती हुई मां
दौड़कर आई
माथे पर हथेली रखी
सूती आँचल से मुंह पोछा।
अब जब पुकारते है ईश्वर को तो
उन्होंने भी मां की तरह ही
आना चाहिए....

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30 APR 2021 AT 9:25

हम दुःखी को नही जानते
जानते है तो बस उसका दुःख।
दुःखी भी भला हमे कहाँ जानता होगा,
उसने बस जाना होगा
हमारे द्वारा दिया गया ढांढस।
दुनिया मे अभी भी बहुत कुछ बाकी बचा हुआ है
साझा करने के लिए...

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25 APR 2021 AT 9:37

समाचार एक जैसे ही है,
बस शहर के नाम अलग है।
जैसे धर्म, सम्प्रदाय और जाति
अलग होने के बावजूद
दुःख एक से है।
अब इस दुःख में
खलल डालो
मेरे ईश्वर.....

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22 APR 2021 AT 21:18

माँ के हाथ से बना मास्क बहुत उम्मीद बंधाता है। कोरोना अब तुम निसंदेह हारोगे।

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22 APR 2021 AT 18:07

ये धरती पहले कोख हुआ करती थी,
न जाने किसने कब्र बना दी।
😢

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