Rahul Barnwal  
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तू शायर होगा अपने किताब का
मै लिखावट हूं अपने जज़्बात का
Joined 21 August 2019


तू शायर होगा अपने किताब का
मै लिखावट हूं अपने जज़्बात का
Joined 21 August 2019
8 JUL 2022 AT 19:58

अभी तो चलना शुरू किया है
अभी तो उड़ना बाकी है
तू जलता जा ये गालिब मुझसे
अभी तो उभरना बाकी है

खामोश होकर सुनता जा तू
खुली आंखों से बस देखता जा
दूर नही है, अब वो दिन मेरा
अब तू भी चर्चा, मेरा करता जा

अभी तो चलना शुरू किया है
अभी तो उड़ना बाकी है
तू जलता जा ये गालिब मुझसे
अभी तो उभरना बाकी है

बहुत सुनेगा तू किस्से मेरी
खुद को खाक बनाता जाएगा
जब होगा शोर मेरे नामों का
तब तब राख बनता तू जाएगा

अभी तो चलना शुरू किया है
अभी तो उड़ना बाकी है
तू जलता जा ये गालिब मुझसे
अभी तो उभरना बाकी है

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14 DEC 2021 AT 20:46

कुछ बातें, कुछ वादें, कुछ एहसासे, अभी बाकी है
संभालकर रखना यादें, चंद मुलाकाते अभी बाकी है

थोड़ा दूर हूं तुझ से मैं, अब अकेला खुद को ले चला
छू लूंगा उचाईयों को, ये कहकर दे रहा खुद को सलाह

कुछ बातें, कुछ वादें, कुछ एहसासे, अभी बाकी है
बिखरती शब्दों की ढेर से, कुछ जज्बातें अभी बाकी है

एक सितम सी ढल रही, मेरी नजरो की चारो ओर
हर लम्हा गुजरती छूकर, जो गूंजती मेरी कानों में शोर

कुछ बातें, कुछ वादें, कुछ एहसासे, अभी बाकी है
लिखता हूं कुछ पन्नों पर, ओर कुछ पन्ने अभी बाकी है

लगता है लौट जाऊं मैं, फिर शुरू करूं नयी कहानी
जो ठहर कर कहती है मुझ से, तू है अलग जिंदगानी

कुछ बातें, कुछ वादें, कुछ एहसासे, अभी बाकी है
संभालकर रखना यादें, चंद मुलाकाते अभी बाकी है

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10 MAY 2020 AT 9:00

तुझको कैसे लिख दूं माँ इतनी ताक़त नहीं कलम में मेरी
हूं मैं तेरा ही एक दरिया माँ तुझ बिन नहीं ये जिंदगी मेरी

मेरा छोटा सा प्रयास को आप (caption) में जरूर पढ़े

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23 APR 2020 AT 10:30

मिला जो जीवन तुमको उसका उपयोग तुम करते रहो
हार मत मानो तुम यहां अपनी परेशानियों से लड़ते रहो
देखो ख़ुद को एक बार पहचानो अपनी मंजिल को तुम
इस डगमगाता रास्तों पर तुम सदैव सीधा यहां चलते रहो

तुम आगे यहां जो बढ़ते रहो तुम आगे यहां जो चलते रहो

भूल जाओ तुम यहां अपनी अंदर के कोई कमज़ोरी को
बना लो तुम इसे ख़ुद के हौसले और अपनी मज़बूरी को
हटना मत तुम अपने लक्ष्य से पीछे तुम उम्मीद जगाते रहो
मिल जाएगी तुम्हे भी मंजिल अपनी बस तुम चलते रहो

तुम आगे यहां जो बढ़ते रहो तुम आगे यहां जो चलते रहो

सामना करना तुम डटकर यहां डरना नहीं ख़ुद से तुम
वो दौर भी जल्द आ जाएगा जब आगे बढ़ जाओगे तुम
तुम्हारा सफ़र ही होगा हमसफ़र यहां पर तुम बढ़ते रहो
हार मत मानों तुम यहां अपनी परेशानियों से लड़ते रहो

तुम आगे यहां जो बढ़ते रहो तुम आगे यहां जो चलते रहो

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1 JAN 2022 AT 14:21

कुछ बीते पल को भूल जाएं हम
कुछ यादें को ताजा कर जाएं हम
कुछ दौर को सीख कर इस साल में
नए साल के साथ कदम बढ़ाएं हम

चलो साथ किसी का निभाएं हम
चलो पुराने रिश्ते फिर से बनाएं हम
चलो बांट कर यह सुख दुख दोनों
नए साल के साथ कदम बढ़ाएं हम

कोई है अकेला तो साथ चढ़ाएं हम
कोई है लाचार तो हाथ बढ़ाए हम
यह रख कर मन में एक संकल्प
नए साल के साथ कदम बढ़ाएं हम

आओ जलाएं किरण की उम्मीद हम
आओ सजाएं किसी की घर को हम
यह सोच रख कर हम सभी को
नए साल के साथ कदम बढ़ाएं हम

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14 NOV 2021 AT 15:30

अलग है तेरे रास्ते, अलग है तेरी मंजिल
मैं भी हूं अलग सबसे, मुझमें है ये सामिल

तू है थोड़ा जुदा जुदा, मैं भी थोड़ा तन्हा
शब्दों को पिरोह कर मैं, लिख दूं हर लम्हा

कभी मिल सके ना दोनों ये ना सोचा हमने
बदलते वक्त के साथ, फर्ज निभाया तुमने

अलग है तेरे रास्ते, अलग है तेरी मंजिल
मैं भी हूं अलग सबसे, मुझमें है ये सामिल

तू है खुद में अलग, तू न है पास किसी के
किन तराजू में तोलू, न हूं मैं साथ सभी के

ये फासले भी तेरे है ये फैसले भी तेरे होंगे
मैं कर सकूं न व्यक्त की कभी तो साथ होंगे

अलग है तेरे रास्ते, अलग है तेरी मंजिल
मैं भी हूं अलग सबसे, मुझमें है ये सामिल

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12 SEP 2021 AT 21:39

रात जैसे तनहा सा, ना जाने कहां खो गया
मिल गई एक सुकून, अब मंजर यहां सो गया

बिखरी पड़ी चारों ओर, यहां रातों की चांदनी
समेट तू इन यादों को, क्यों ख्वाबों में खो गया

देख तू इन रातों को, यह तारे तुझ से कह रहे
तू मत लिख सितम खुद में, हवाएं ही बह‌ रहे

मगर फिर भी मन मचलता, रातों को देखकर
फिर हैं क्यों खामोशी काली रातों में टटोलकर

बहुत कुछ बदला सा है, खोया भी है आसमां
क्यों ढूंढ रहे हैं अंधेरों में भी उजाले की अरमा

रात जैसे तनहा सा, ना जाने कहां खो गया
मिल गई एक सुकून, अब मंजर यहां सो गया

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30 JUL 2021 AT 22:46

सब कुछ बिकता
सिवा इंसानियत के

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6 JUL 2021 AT 14:37

किस नाम दे जाऊं तुझको
यह कहीं ओर मैं चल जाऊं
गुजरती है हर यादें मुझमें
कैसे खुद को मैं बुन पाऊं

राह नही आसान है मेरा
मेरा वजूद ही मुझ से दूर है
खुदको कैसे बताए ये दिल
ये ख़ुद में कितना मजदूर है

कभी ख्यालात आते नही
तूक्यों इतना मकरुर हो गई
इल्जाम थी क्या मेरी इसमें
तू ही तो यहां मशहूर हो गई

किस नाम दे जाऊं तुझको
यह कहीं ओर मैं चल जाऊं
ये गुजरती समा की राहों में
बिन कहे खुदमे लिख जाऊं

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5 JUL 2021 AT 21:29

देखा नही तुझको कभी, पर किस्से सुने हजार
मां की ममता से बढ़कर, तू भी करती थी प्यार

कहानियां सुनाती है मां, तू कितनी थी प्यारी
जिसने खेला गोद में तेरे नानी इतनी थी दुलारी

खुश नसीब तो नही था मैं, जो तुझे देख पाया
परती ना थी धूप कभी, जब तू बनती थी छाया

मां से ही जाना हूं, तेरे लबों पर हसीं रहती थी
दिन रात बच्चो में अक्सर तू भी फसीं रहती थी

तेरा साथ न मिला पर सुन कर सुकून मिलता है
तू थी इतनी प्यारी नानी, मन ही मन खिलता है

देखा नही तुझको कभी, पर किस्से सुने हजार
मां की ममता से बढ़कर, तू भी करती थी प्यार

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