एक शायर की महफ़िल   (Prashant Sameer)
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Joined 13 March 2019


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इंतजार जब अपने सब्र को तोड़ता है,
तो महबूब का दिया वक्त भी
हक़ से ज्यादा भीख सा लगता है।

और एतबार जब मोहब्बत पर रहता है,
तो कठिन परिस्थितियों से लड़ते हुए भी वो शख़्स
महबूब से हंँसते हुए मिलता है।

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तेरे दिल में मेरी तलब
क्यों बुझने लगी है?
हमारी मोहब्बत को आखिर
किसकी नजर लगने लगी है?
वफ़ा की तालीम में ये कहीं नहीं लिखा था,
की किसी को प्यार से महरूम करके 
कहो कि जाओ यही जिंदगी होती है।

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वफ़ा की ओस इतनी शीतल थी,
फिर क्यों गम के बादल बरस गए।
उड़ने को सारा आसमांँ खुला रहा,
और हम खाक होकर,मिट्टी के घड़े में कैद हो गए।


किसी शख्स ने मुझसे कहा था,
की अगला जन्म भी होता है इस जहां में,
परंतु इंतजार इतना लंबा हो चला था
की मुक्ति के द्वार पर खुद हम चले गए।


वहां भी सकूं ना मिला मुझे
नियति के फैसलों को बदलने की कोशिश जो कर गए।
आखिरकार अगला जन्म भी हुआ मेरा,
परंतु इस बार,किसी और की वफ़ा पर खुद हम बरस गए।

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हो सके तो,
ये दूरियां कम कर देना।
इस जन्म के लिए सज़ा,
अब बस कर देना।

-



आज़ाद कर दो न उस जिस्म को,
जिसमे अरमानों के सैलाब
बरसों से कैद है।
घुटन हो रही है इस मर्ज में उन्हें,
जबकि मेरी मोहब्बत ही
एक मात्र उनका वैध है।

नजाने कितने आए उन्हें अपना बनाने,
जो गैर ही रह गए तो खैर है।
और कुछ पल की खुशियांँ गर दे सकता हूंँ मैं
तो देने दो न मुझे,
वरना जिंदगी ने दर्द के सिवा,
उन्हें दिया ही कहांँ कुछ और है।

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मर्ज भी इतना खूबसूरत हो चला था,
की इश्क का बुखार ले लिया मैने।
था मेरा कोई नही होने वाला,
फिर भी एहसासों का उधार लिया मैने।

दिल के लहू जब आँखों से बहने को आएं,
अपने ही सीने से दिल उखड़ लिया मैने।
अब तो जैसी दुनिया वैसे हो गए हैं हम
सच कहो तो,सच कहने की लत सुधार लिया मैने।

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जब आपके मांँ बाप ही
आपको ना समझना चाहे,
तो औरों से शिकायत कैसी
उनका तो हक बनता है यार।

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जब खुद को
अपनी मोहब्बत की अमानत समझने लगो,
तो प्रेम को उसकी परिकाष्ठा तक ले जाना
बहुत ही सरल है।
और जब ये मोहब्बत के पाजेब,
पैरों में जंजीर बनकर चुभने लगे,
तो मुझसे रिहाई इसी मोहब्बत में मांग लेना तुम
तुम्हे ये मेरी कसम है।

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ये सोचते सोचते रात गुजर गई,
और हँसते हंँसते 4 बज चले थे।
क्योंकि रूहानी मोहब्बत के किस्से
मैंने उनसे सुना था
जिनके हकीकत में 4 बच्चे थें।

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लकीरों में लिखा
इतना क्या खास था?
की वफ़ा जिनको रास ना आया,
वो मेरे पास था।

अब तो करीब आ जायेगी मोहब्बत,
ये सोचकर एक अलग उल्लास था।
और जैसे जैसे वक्त विरानियों में तब्दील होता गया,
किनारों पर आकर भी,डूबने का प्रयास था।

तत्पश्चात,सीने के तूफान जब थमने को आएं,
उजड़ा मेरे दिल का सारा संसार था।
और फिर ख्याल आया,की मैं पहले ही ठीक था,
जब मैं एक जिंदा लाश था।

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