कण कण में वो व्याप्त है
कभी मूर्त-अमूर्त
देह देह में वास जिनका
ईश्वर स्वतः स्फूर्त-
योजना को धरातल पर उतारना होगा
कल्पना तो हर कोई कर ले
कल्पना को मूर्त रूप देना होगा
सपनों को साकार करना होगा
केवल योजना से नहीं होगा...-
मिट्टी का इंसान
मिट्टी का भगवान
मिट्टी की दुनिया
पर पत्थरों के दिल।
क्योंकि इंसानियत मूर्त है,मूर्ति नहीं-
उसको देना है, वो देता है
क्या मांगा है उसने हमसे
उसे राम कहो या श्याम कहो
मूर्त कहो या अमूर्त कहो
जो चाहो वो कह सकते हो
मानो न मानो मनमर्जी है
उसने तो बस इतना चाहा है
इतना ही तो समझाया है
मनुष्य रूप में रचा हमें
हम मनुष्य रूप में बने रहे-
आग को पानी पिलाया है..
खुद को इतना जलाया है..
यु मैंने खुद को बिखेर कर तेरी मूर्त को बनाया है..
और
मैंने तेरी यादों में सबकुछ अपना छोड़ दिया अब चल बता तू मुझको तूने क्या क्या गवाया है..
-
अजन्मा अनादी
क्षण क्षण में अविभूत
हे सृष्टि रचयिता
ये प्रकृति तेरा स्वरूप
-
हे हमराही, पल पल क्षण क्षण ढलती जिन्दगी,
जैसे रेत मुट्ठी से फिसलती जाती रेत,
ए दिल
जितना जतन से पकड़ो,उतनी तेज फिसलती जाती रेत जिंदगी की,
हमसफ़र, हर पड़ाव पर बिछुड़ जाते ये रिस्ते, संगी साथी,
माना दिलो में बहुत हैं शिकवे, हैं गिले जिंदगी तुझ से,
कितने भी हो गम, पीड़ा हर पल तेरी,
फिर भी हँसते रहना हैं, सहना हैं तुझ को,
क्योंकि.... ये जिंदगी जैसी भी हैं, हैं बहुत हसीन अनमोल,
बस एक ही बार हैं मिलती ये गार की लोथ..
कर जाने को कुछ महान, आदर्श मूर्त बनाने को..✍🏼🐦-
मेरी सभी ख्वाहिशों को दबोच लिया गया
बेटी थी मे इसलिए मुझे नोच लिया गया
मेरा भगवान् भी सब कुछ देखता रह गया
बच्ची थी मगर मूर्त मुझे सोच लिया गया
# आकाश
# 😕-
मैं मिट्टी की राख
तुमसे मिली में नाथ
धूल बनने वाली थी
हृदय मूर्त बनी में नाथ-