बात करनी गर हो मुश्किल, आँखों से इशारा करना, मुहाल इस कदर भी नहीं है, एहतराम हमारा करना! कश्तियाँ तुमने बहाईं नहीं हैं कभी सैलाबों में, तुम्हें आता ही नहीं है भँवरों से किनारा करना! तुम्हें भी हो जाएगा मामूल-ए-ज़ियाँ और मुझे भी हमें भी आ जाएगा कभी नुकसान गवारा करना! _राज सोनी