मुसाफ़िर ,एक उंगली उसकी
उसका जिस्म पूरी दुनिया
सफ़र भला एक रात में कैसे खत्म हो?-
मैं मुसाफ़िर हूँ चलता जाऊँगा
अपनी मंज़िल तक
इक न इक दिन जरूर पहुँच जाऊँगा
माना राह में दुश्वारियाँ होंगे
मैं फिर भी सरलता खोजता जाऊँगा
मैं घने अवसाद में
अपनी सफलता ढूँढता जाऊँगा
मैं मुसाफ़िर हूँ चलता जाऊँगा
सारे दुश्वरियों को झेलता जाऊँगा।-
इश्क़ के शहर में हम काफ़िर हुऐ ,
ज़ुल्म कर गया सनम हम मुसाफ़िर हुऐ।-
अब जो आना तुम कभी उसके पास तो प्रीत बन कर आना
मोहब्बत की शम्मा गर ना जला सको, तुम मीत बन कर आना
ना जाने कबसे खामोश बैठा है तुम्हारी फुर्कत में मुंतजिर
गुनगुना सके जिसे तन्हाई में, तुम वो गीत बन कर आना
फिरता रहा है दर बा दर वो फकत तुम्हारी तलाश में
कभी जो हौसले टूट जाए तो तुम उम्मीद बन कर आना
लड़ता रहा है ज़माने से वो हर बार तुम्हारी खातिर
कभी जो हार जाए वो, तुम उसकी जीत बन कर आना-
दिल मुसाफ़िर है भटकता रहता है दिल के रस्ते
कुछ खट्टी मीठी यादो को संजोने के लिए
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मोहब्बत को शिद्दत से पाने की
कोशिश में ख़ुद को मुसाफ़िर बना लिया
वो मिली तो नहीं मुझे मैंने खुद को
उसका आशिक़ बना लिया।-
जो मुसाफ़िर रह गया था खडा़ जाती हुई मंज़िल से अपनी ख़ता पूछते
आज मंज़िल ढूंढने निकली है उसी मुसाफ़िर को उसका पता पूछते-
इक रोज़ तुम
लौट के आना फिर
किसी बिछड़े हुए
मुसाफ़िर की तरह,
और मैं... मैं वही
ठहरा मिलूँगा तुम्हें
किसी वीरान पड़े
रास्ते की तरह!!!-