ना हम मुलाजिम प्यार के, ना प्यार करना हमारा काम है.....
फिर भी ना जाने क्यूँ, मेरा नााम आशिकों सा बदनाम है.....-
जाम से बास्ता ना कोई अपना,
बस शायर हूँ इसलिए बदनाम हूँ....
हाँ सच कहती हो तुम हुज़ूर,
मैं शायरीयाँ लिखता तमाम हूँ......-
क्या वो इसीलिए की हम शेर लिखते तमाम है,
या फिर इसीलिये की कभी कभी लगा लेते 2-4 जाम है।-
प्यार को मदहोसियत का अड्डा मत बनाइए
यहां हर कोई प्यार का मुलाजिम तो नहीं
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बेरोजगारों से पूछोगे जो हाल तो सब मस्त ही कहेंगें
ड्यूटी अधिक,वेतन कम को तो सरकारी मुलाजिम ही रोते मिलेंगे।-
पगार की जगह, रोज उसका दीदार होता रहे बस.,
हम मुलाजिम से, उसके दिल-ए-दफ़्तर में रहते हैं..-
मोहब्बत के मुलाजिम बनकर रहो,
लोग तुम्हारे मुलाजिम बन कर रहेंगे।
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कुछ इस तरह हम उनके मुलाजिम बन गए ।
ख्वाब हमारे उनकी मूजूदगी के मोहताज जबसे हो गए।।-
मुलाजिम की दोस्ती!!
मैं हूं एक मुलाजिम!
और दोस्त है मेरे ! ये साजो सामान!
करता हूं मैं बातें इन से हर रोज।
बस फर्क है इतना ! मैं बोलता हूं और ये सुनते है ,
ना कोई गर्दिश और ना कोई असमझ° बस आभास है,
मुझमें।-
तुम ठहरी सरकारी मुलाजिम
मेरी चिट्ठियों का तुमपर
कोई असर ना होगा...।
दरअसल!
मैंने तुम्हें बात-बात में कई दफा
अपने इश्क का इजहार किया ।
पर कई दफा तुमने उसे समझा नहीं
और कई दफा तुमने उसे
किसी ठंडे बस्ते में डाल दिया।
खैर,
अब मेरी उन चिट्ठियों ने
तुम तक पहुंचना ना गवार समझा
और तोड़ दिया अपना दम
वही टेबल पर पड़े पड़े...।-