Rakesh Panigrahi   (राकेश पाणिग्राही)
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Joined 7 March 2019


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Joined 7 March 2019
29 DEC 2024 AT 11:26

है पीर, है मुर्शिद !

मैं अब ख़ामोश रह लूँगा,
उसकी याद आई तो ग़म में
अकेले रो लूँगा।

मैं दफ़्तर से निकलूँगा
घर नहीं जाऊँगा,
मैं तेरा इंतज़ार करूँगा
दिल का दरवाज़ा खोलूँगा।

मैं तुम्हारे ना आने तक
ख़ुदसे बाते करूँगा,
ग़ज़ले लिखूँगा,
मेरी ज़ुबान से जो भी निकलेगा
मैं बोलूँगा।

रात के 5:05 हो गए है
देखो तुम जाकर सो जाओ,
मेरा क्या है ?
मैं दिन में भी सो लूँगा।

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10 DEC 2024 AT 12:35

मैं एक वक्त पर तुम्हारे लिए
फूल ख़रीदना चाहता था,
मैंने महसूस किया
मैं भूखा हूँ पिछले कई सालों से
मैंने रोटी खाई,
तुम्हारे लिए लिख दिया एक प्रेम पत्र। 💌

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28 NOV 2024 AT 9:06

मुझे क्या चाहिए ???
तुम ?? ना …..
कुछ भी नहीं ।

(Read in caption…)

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27 MAR 2024 AT 23:00

गणित की कक्षा में अव्वल
आई लड़की बनाती है देश का नक़्शा,
बाँट देती है सभी में बराबर- बराबर।

मेरे हिस्से कुछ नहीं आया,
कहने पर कहती है,
तुम मेरे हो, हम तुम एक ही हिस्से में
रह लेंगे साथ साथ !

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23 MAR 2024 AT 11:29

मुझे अवसर- ना उम्मिदियों से बचना है,
मुझे आशा- निराशाओं से बचना है,
मुझे अभि कई अभिनव रचना है,
मुझे अपना सही सारथी चुनना है ।

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3 MAR 2024 AT 11:04

एक रोज़, एक शाम तुम्हें निगल जाएगी !

तुम वहीं किसी दफ़्तर में किसी मेज़ पर पड़े
ढेर हो जाओगे,
या रहोगे लिखते पढ़ते कोई
सुंदर सी कविता।

तुम्हारा इस्तीफ़ा तुम्हारे किसी ईमेल के
ड्राफ्ट में पड़ा रह जाएगा,
जिसे तुमने पिछले महीने खोलकर
उसकी दुरूस्ती की थी।

तुम्हारे सपने वहीं के वहीं बेदाग़ पड़े रह जाएंगे।
उनपर धूल और मिट्टी की मोटी परत चढ़ जाएगी।

एक रोज़ एक शाम तुम्हें निगल जाएगी !

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3 MAR 2024 AT 10:55

मन : मैं अब उसे पुकारूँगा नहीं !!!!!

दिल: तुम अब उसे पुकार सकते भी नहीं 😝

मेरा अहंकार मेरे सच से परे है ।

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28 FEB 2024 AT 20:13

एक शाम ऐसा होगा,
हम अपनी सारी सीमाएँ लांघ चुके होंगे,
फिर कुछ ना होगा हमारे हाथ,

मैं उस वक़्त से- मैं उस शाम से डरता हूँ !

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25 FEB 2024 AT 23:36

केवल प्रेम को यह छूट है कि,
वह तुम्हें एक रोज़ इस साम्राज्य से
नेस्तनाबूद कर देगा. … ।

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7 FEB 2024 AT 21:01

तुम एक रोज़ असला- बारूद ले आना,
मैं तुम पर फूलों से हमला कर दूँगा ।

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