मैं खुदा को मेहरबान समझूंगी, अगर तपती धूप में भी भारी बरसात हो और यह मन की कली खिल जाये बेशक मैं जन्मों का थकान भूल जाऊँगी, अगर मेरे महबूब की हाथ की मुझे एक कप चाय मिल जाये...
जंजीर - ए - मोहब्बत मे बंध तो गए तेरे खातिर, अब बस यह जमाना हमे पत्थर-ए -जुदाई ना माड़े... हार जाये चाहे अपनी जिन्दगी का मुकदमा हम, पर बस इस सितम - ए - अदालत मे हम अपनी मोहब्बत का मुकदमा ना हारे...
Kyun tu bewajah meri mohabbat pe sakh kar mujhse ruth jaya karta hai... Are hum toh woh ashiq hai, jise tu roz chath pe na dikhe toh dil tut jaya karta hai... — % &
क्या सुनाए हाल - ए - दिल अपना , बस सालों से कुछ ज़ज्बात उसमे दबे पड़े हैं... इजहार -ए -मोहब्बत भी कैसे करे जनाब??!!! , हम तो कुछ गलतफहमियों के वजह से अपनी "मोहब्बत" की नजरों से ही गिरे पड़े है... — % &
Wo to teri mohabbat se majboor hai, tabhi sajde me sar jhuka liya karte hain... Warna hum toh wo bala hai janab, jo sesha maar pathar tod diya karte hain... — % &
बखूबी याद है आपका साथ निभाना उस वक़्त, जब ना जाने क्यूँ पर हर बात के लिए लोग हमे ही कोसा करते थे... चाहे जाए हम उन्हें कितना भी मनाने, पर हर छोटी सी बात पे सब हमसे रूठा करते थे... वो वक़्त बुरा तो था पर खुशी है कि हमारे आंसुओं को पोछने के लिए आप हर वक़्त मेरे पास हुआ करते थे... जब सबको हमारे नाम तक से नफरत थी, तब आप यही नाम अपने पौधों के हर पत्ते पर लिखा करते थे....