अविनाश पाल 'शून्य'©   (✍🏼अविनाश पाल 'शून्य')
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Joined 30 March 2020


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Joined 30 March 2020

यूँ न पूँछा करो मुझसे हाल उनके
वक्त बदला ,बदल गये हैं ख्याल उनके ।

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सिर्फ मेरी माँ नें देखा है मेरी आखों में समंदर
जमाने की नज़र में मैं बहुत मजबूत लड़का हूँ।

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न इश्क,न मुहब्बत, न ही प्यार था
वो तो बस जिगरी यार (दोस्त) था ।
शायद उसकी कुछ मजबूरी हो गयी
इसीलिए हम दोनों में दूरी हो गयी।

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मेंहमान नवाजी में नवाजी थी उसने चाय मुझे
फिर किसी की याद आयी और चाय ठण्डी होती रही...

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वर्षों की दोस्ती में सहसा उसे क्या ख्याल आया !
लोग खड़े देख रहे थे हमें और उसने हाथ मिलाया।

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90 वर्ष जियूँगा मैं जब से बताया है नज़ूमी नें ,
मैं बस ये सोच रहा हूँ ये वक्त कटेगा कैसे ?

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किसी रोज सबके गिले - शिकवे मिटा जाऊँगा ,
जब अनायास किसी दिन मैं मर जाऊँगा ।

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बचपन में पीड़ा होती थी सारे जख्म जो तन पे थे ,
उससे पीड़ा कहीं अधिक अब,सारे जख्म जो हैं मन पे हैं।

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बचपन में पीड़ा होती थी सारे जख्म जो तन पे थे ,
उससे पीड़ा कहीं अधिक अब,सारे जख्म जो हैं मन पे हैं।

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बचपन में पीड़ा होती थी सारे जख्म जो तन पे थे ,
उससे पीड़ा कहीं अधिक अब,सारे जख्म जो हैं मन पे हैं।

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