अविनाश पाल 'शून्य'©   (✍🏼अविनाश पाल 'शून्य')
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Joined 30 March 2020


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Joined 30 March 2020

खुद ही खुद से कई दफ़ा टकरा गया मैं
आज आइनों में फँसकर घबरा गया मैं।

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इश्क में जो मुकर जाता तो बेवफा कहता उसे
मेरा तो दोस्त था वो, बताओ क्या नाम दूँ उसे ?

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रोशनी नहीं बची थी , मैं था बुझने ही वाला,
तभी किसी ने कहा- सब्र रख है भोर होने वाला I

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किसी को हो जरूरत तो ले जाओ मेरा दिल,
मुझे इस दौर में तो केवल दिमाग की जरूरत है।

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कुछ इस कदर नाराज़ हूँ खुद से
कि कोई प्यार जताये भी तो झगड़ जाता हूँ मैं ।

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तुम्हें मिलना हो तो नये पते पर मिलना मुझसे
आज कल मैं कुछ पुराने ख्यालों में रहता हूँ ।

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नासमझ मर जाते हैं एक ही बात को लेकर
समझदार लोग ताउम्र जीते हैं मर-मर कर।

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न कोई चिट्ठी - पत्री , न कोई फूल दिया उसने ,
कुछ ऐसा इश्क किया था हमने।

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ये खुशी, खयाल, परवाह सब अपने पास रहने दो
मैं हूँ थोड़ा उदास बस मुझे उदास रहने दो।

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बस इतना ही बदला है गाँव से शहर में आकर
जो कल हल चलाते थे वो आज रिक्शा चलाते हैं।

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