याद नहीं शब -ए- इंतिज़ार मुझको
करता ही कौन है अब प्यार मुझको
बस एक तू ही है मेरा यहाँ मेरे मुर्शिद
और किसी की न रही दरकार मुझको-
नहीं मिलता वक्त.. साथ गुजारने को..!!
!!मुर्शिद!! हम दोनो एक ही फलक के सूरज चांद है..-
दिल-नवाज़ी कर रही है ज़िन्दगी भी पूछकर
क्या करोगे उस ख़ुदा से आशिक़ी भी पूछकर
इक दुआ है इक नशा है इक ख़ुदा है हर तरफ़
अब इबादत कर रहा है आदमी भी पूछकर
आज मुश्किल में पड़ा है बाग़ का माली यहाँ
फूल करते हैं यहाँ कुछ बंदगी भी पूछकर
हम-सफ़र को साथ लेकर चल दिया मैं वहाँ
हाँ वहाँ पर हो रही है दिल्लगी भी पूछकर
एक मुर्शिद मुझको मिलता काश 'आरिफ़' ख़्वाब में
इश्क़ होता और कुछ नाराज़गी भी पूछकर-
कुछ यूँ बन जा अब तू 'ख़ुदा-ओ-मुर्शिद' मेरा
मैं तेरी ही इबादत में किसी मलंग सा हो जाऊँ
- साकेत गर्ग 'सागा'-
फिर यूं हुआ कि
मुर्शिद को हमने
उठा कर पटक दिया...🙄
इश्क़ का एड्रेस उन्होंने
गलत बताया था...🤐-
ये "अभिवाणी" ये आत्मज्ञान, आत्ममंथन ये सब तो "अभि" एक दिखावा है।
असली मक़सद तो इस तन्हा मुसाफ़िर को बस अपना दर्द लिख जाना है।-
"जिहालात को खत्म कर इल्म की रौशनी है जलाई,
उस्ताद के सोहबत में रह कर मैंने तालीम है पाई,।
गलत राह की तरफ बढ़े जब जब भी मेरे कदम,
तो उस्ताद ने ही मुझे हक़ राह है दिखलाई " ।-
यह दर्द है मेरा या तेरी तलब है मुझे "मुर्शिद" पर जो भी है
मुसलसल है।-
कोई मीर नही, कोई पीर नही, कोई सजदा-ओ-ज़ियारत नही,
तू ही मुर्शिद, तू ही इमाम, किसी और की दिल को ज़रूरत नही!!-