करते नहीं बहस हम उन लोगों से
जो बस अपनी मुर्गी की तीन टाँग करते हैं-
नैतिकता की मुर्गी है वो,
हमको समझे बिल्ला..!
बाबा वो ही समझ न पाए,
स्क्रू उसका ढीला..!
स्वतंत्र गुरु जड़ चेतन कहते,
क्या कुत्ता क्या पिल्ला?
मूरख हमको अदा दिखाए,
रंग बिरंगी लीला..!
विस्तृत उ ना समझे हमको,
समझे सागर नीला..!
गहराई से डर कर बोले,
भाए मुझको पीला😊!
सिद्धार्थ मिश्र-
समय समय का होता फेर,
दिग्गज भी होते हैं ढ़ेर.!1!
समय दिखाता है औक़ात,
मुर्गी भी जब मारे लात.!2!😊😊
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देखा होगा आपने कभी
बड़े से बादल को आराम से उड़ते हुए,
और उसके पीछे पीछे भागते
बादल के छोटे छोटे टुकड़े।
ऐसा नहीं लगता जैसे
माँ मुर्गी के पीछे
छोटे-छोटे चूजे
कदम ताल करते हुए
खाने की तलाश मे निकले हों!
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।।पेट कहे पुकार के।।
कार्तिक का महीना और ये मुर्गी करें शोर
पाप पूण्य का देखूंगा तो पेट हो जायेगा बोर..🍗-
लोग करे 'अहा' टेस्टी के डिमांड
मोड़ी करे 'हाहा' टेस्टी के माँग
तो लो भैया मोड़ा कलम अपने पैरों पे खड़ी होये गयी ....
"फनी टेस्टी लिखै चले हैं , मोड़ा मोड़ी का
पूछे सबसे का-का लिखै, धरा निगोड़ी का"-
भागते हैं मुर्गे कितने सारे,
कोई अपनी प्यास बुझाने को,
तो कोई अपना प्राण बचाने को,
मुर्गियों के मानों वारे न्यारे....
कोई भागती सुंदरता का एहसास दिलाने को,
तो कोई आ जाती बलिदान ले जाने को।
मुर्गियों के दोनों हाथ में लड्डू😂😂😂😂-
फूल में गुलाब, धातु में सोना, पशु में गाय
पक्षी में मुर्गी वृक्ष में खाद्य पदार्थ और लकड़ी
और तुम सोचते हो लोग मोहब्बत यूं ही चुन लेंगे-
कार्तिक का महीना और मुर्गी रही पुकार ,,
जी लेने दे मुझे ऐ इंसा एक दिन और आज !!
थोड़ा-सा और कर लूँ अपनो बच्चों से प्यार-दुलार ,,
भर दूँ उनके जीवन में बस थोड़ी-सी बहार !!
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#मुर्गी_हँसकर_कही. #कोरोना
#हास्य_आनंद_लें
पहली बार है,'गर्भ सुरक्षित',
मौत से हम सब,भी ना हारे;
मुर्गी हँसकर, कही पिया से,
"अच्छे दिन", आ गए हमारे!
याद है तुझको छोटा चुज्जा,
तीस दिवस का आज हुआ!
बड़े पुत्र की देख जवानी,
आज बलम,मुझे नाज हुआ!
देखो ना "नन्हीं चुजिया" भी,
फुदक रही है, बिना सहारे!
मुर्गी हँसकर, कही पिया से,
"अच्छे दिन",आ गए हमारे!
मार चुकी थी इच्छा अपनी,
कल को "वंश" बढ़ाने में!
अक्सर तुझसे भाग रही थी,
प्रिय-तम प्यार, निभाने में!
झुनुआ का,आया दामाद ये,
उसदिन मेरी,बहन को मारे!
मुर्गी हँसकर, कही पिया से,
"अच्छे दिन",आ गए हमारे!
क्या मानव को, पता नहीं,?
कि मेरा भी "परिवार" है!
जितना प्यार उन्हें अपनों से,
मुझको भी, वो "प्यार" है!
शायद प्रकृति, ने देख लिया,
'कैद हो, गए, "मानव-सारे"
मुर्गी हँसकर, कही पिया से,
"अच्छे दिन",आ गए हमारे!
#रचनाकार_आलोक_शर्मा
#महराजगंज_यूपी-