देवेंद्र उपाध्याय   (देवेंद्र उपाध्याय)
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Joined 10 January 2018


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Joined 10 January 2018

देश के वीर सपूतों को सलाम लिखता हूं
जो US पे भारी पड़ जाए उसे कलाम लिखता हूं।— % &— % &

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जब चलने लगूं नेकी की राह पर
तो लोगों की घृणा लेने लगती आकार
मदमस्त हाथी हूं जब मैं चलूं बाज़ार
ना जाने क्यों ये कुत्ते भोंके हजार..

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परखा गया हूं दुनिया वालों की नजर से
इम्तहानों के दल दल से निकाला गया हूं
निंदित नियति का अवसादित जीव हूं
मैं घृणित कारकिर्दगी की असल नीव हूं।

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ये दुनिया पक्षपाती है, बदले में तुझसे कुछ चाहती है
शुद्ध मन और सुखी रोटी की क्या बिसात,
अनेकों व्यंजनों से लोगों को खरीदी जाती है..
गर तुझमें चमक है हीरे जैसी,
उसकी जहर भी मीठी बन जाती है..
दिन हीन की मीठी खीर में भी नुक्स निकल आती है..

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वक्त से शिकायत नहीं उसे भरपूर जिया मैने
ये बात अलग है इसे जाया भी किया मैने
अब ये दिल बहुत रोता है के ये क्या किया मैने
काश के ऐसा हो, मैं जिंदगी से कह पाऊं
ऐ जिदंगी देख तुझे फिर से रिस्टार्ट किया मैने।

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वो बलम भला कैसा बलम जो जोरु का गुलाम नहीं
वो बीवी भला कैसी बीवी जो तुझे पीटे सर-ए-आम नहीं
वो साम भला कैसी साम जहां बीवी का धीतकार नहीं
वो रात भला कैसी रात जहां दारू की बौछार नहीं
हर दिन बीते सुध मिटाने जाता हूं बीयर बार में
5 बजे दफ्तर से निकलूं, घर पहुंचूं आधी रात में
खाना खाऊं फिर सो जाऊं, ए सी चला कर खाट में
सुबह जागने की दवा छुपी है सिर्फ बीवी की लात में।

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दिल टूटा ऐसे की एक आवाज़ तक ना आई
मर रहे थे हम वो देखने तक ना आई
कितनी बेदर्द थी वो, जिससे हमने मोहब्बतें निभाई
वो मेहबूब बिछड़ के एक आंसू तक ना बहाई..

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श्री राम जी की लहर है,
बड़ी मुश्किल चौबीस की डगर है
अब न कोई अगर मगर है,
इस बार 400 की खबर है...

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एक ओर दुर्योधन सत्ता पाने पे आतुर है
एक ओर अर्जुन सम मोदी बहादुर है
अब देखना यह है...
इस महाभारत के रण में जीत किसकी होती है ?
उसकी जो सर्वदा अधर्म के पाला में रहा
या उसकी जिसके साथ मुरलीवाला रहा..

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एक बदनाम शख्सियत हूं, बदनामी मेरी पहचान है
वो कहते हैं जरा चुप रहो, दीवारों के भी कान है
कोई सुन लेगा तुम्हारे लड़खड़ाते अल्फाज को
क्यों नीलाम कर रहे, इज्जत-ए-सरताज को।

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