बड़ी उम्मीद लिए
आशा वाली नाव में बैठी थी..
पर वो मुझे निराशा वाले किनारे पर
उतार आयी...
अब इस पार कोई है तो नहीं मेरा..
पर जिस मिट्टी ने पराई हो कर भी
मुझसे माँ सी लाड़ की,,,,
उसे छोड़, आगे बढ़ जाऊँ,,
....
....
नहीं...
ज़रूरतें मेरी,,
इतनी ख़ुद-ग़रज़ तो नहीं...!!
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