किसी की ऊंची आवाज़ तक ना सुनने वाली,
किसी की बदतमीजी को माफ़ कर गई।
चाहती तो कर सकती थी उसी के लहज़े में बात उससे,
उसका मान रखने को वो चुप-चाप सुन कर आ गई।।-
तुम मेरे भी मां-बाप की इज्ज़त कर लेना,
मैं समाज में तुम्हारा मान रख लूंगी।
तुम उनके जैसा ख्याल रख लेना,
मैं तकलीफ़ कोई तुम पर ना आने दूंगी।।
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इज्जत, मान-मर्यादा, तहजीब, प्रतिष्ठा
ये सब "ढोंग" है "भरे पेट का",
"भूखा पेट" ये सब क्या जाने वो तो
अपना पूरा जीवन "पेट" की
"आग बुझाने" में लगा देता है..!!
:--स्तुति-
आज राजांमधला एक जरी
गुण आपण अंगीकृत केला
तर राजे मनापासून खूष
होतील आणि त्यांच्या
मावळ्यांकडून त्यांना हाच
खरा मानाचा मुजरा ठरेल.
🚩 जय शिवराय 🚩-
शुद्ध 24 कैरेट जैसी
"मान कषाय"मानव जाति में
अमिट नाम,कुल,जाति,
ज्ञान,रूप की लालिमा
चरमोत्कर्ष पर है,,
विनय की मंद अग्नि में
सुनो..... तपाते हैं,,
मृदुता एक अंलकार बना
स्वात्म को अंलकारित कराते हैं
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पता....ताप.... तप है
मान.....तापमान नहीं
झुलसने से बचाव
जब मान का गलनांक
शत प्रतिशत चाव होगा
स्वर्णकार के प्रति समर्पण
तभी तो निर्मित.......
कंठ में कोमल कुसुम हार
का ठहराव होगा!!
24.8.2020-
भुला कर अपना घर बार वो कितनी निष्ठा से कर्तव्य कर रहे,
हम देखों कितने लापरवाह है जो घर भी नही बैठ रहे!!-
छूट गयी है साथ मेरे परछाई बीते साल की
तन्हाई में याद आती है तन्हाई बीते साल की
मान मिला सम्मान मिला मुझ को बीते साल में
पल पल मुझको मार रही है रुसवाई बीते साल की-
वो बेवजह ही मुझको मान देता गया,
खुद गुमनाम था मुझे नाम देता गया,
मेरे आईने से तस्वीर उसने मेरी मांगी
और बिना जाने मुझे अरमान देता गया,
भटकता रहा खुद वो दरबदर बेखबर
घरौंदा नहीं पर मुझको क़याम देता गया,
मेरी नाकामियाँ रखी सदा अपने सर और
रुसवाइयों का खुद को इल्ज़ाम देता गया,
मेरा बुरा वक्त मुझे छोड़ता ही नहीं तन्हा
अच्छे दिनों का वो एहतमाम देता गया !-
आकर्षण तो हर रिश्ते में हर जगह देखने
को आसानी से मिल जाता हैं,
मगर समर्पण,एक दूसरे के प्रति
सम्मान, प्रेम हर जगह नहीं बल्कि
कही-कही होता है।-