बरसन लागि बदरिया रूम झूम के
बादर गरजे, बिजुरिया चमके
बोलन लागि कोयलिया
घूम घूम के
बरसन लागि बदरिया रूम झूम के
रामदास के गोविंद स्वामी,
चरण कमल नित
चूम चूम के
बरसन लागि बदरिया रूम झूम के-
मेघ है
मल्हार है
इस दिल को करना
आज इक़रार है
हाथ में लेके बैठे हैं चाय का प्याला
बस एक अदद हमप्याले का इंतज़ार है
- साकेत गर्ग-
बहुत तपिश सी रहती है ज़िंदगी में आजकल
सुनो! तुम मेघ-मल्हार बनकर आ जाओ ना
- साकेत गर्ग 'सागा'-
हर साल सावन से चिढ़ने वाला
आज सावन में जमकर भीगा
पहले प्यार के पहले सावन का
पहला दिन उनके साथ जो बीता
मेघ फ़लक़ पर जो छाते रहे
वो हमारे और करीब आते रहे
कभी गीली मिट्टी की ख़ुश्बू आई
कभी उनके बदन को छू पुरवाई
कुछ मौसम की ठंडक
कुछ उनके छुअन की
धरती की तिश्नगी मिटी
और तिश्नगी मेरे मन की
मल्हार से मिल कुछ यूँ उनकी
हसीन बे-परवाह ज़ुल्फ़ें लहराई
सारे जमाने ने देखी मेरे चेहरे पर
छाई उनके प्यार की रानाई
प्यासे इस जिस्म प्यासी इस रूह को
जैसे मिला हो आब-ए-ज़मज़म
वो दिनभर बैठे रहे पहलू में
और बादल बरसते रहे झम-झम
विश्वास भी प्रबल है और प्यास भी
के अबके सावन जमके बरसेगा
हर सावन तरसा है जो यह दिल
इस सावन बिल्कुल ना तरसेगा
- साकेत गर्ग 'सागा'-
ओ सावन! तू मन में आ जा।
थोड़ी-सी हरियाली ला जा ।।
जीवन कितना नीरस है
दिखता कुछ भी खास नहीं
बस जेठ-दुपहरी रहे हमेशा
क्यूँ हिस्से में मधुमास नहीं
आकर दिल की जमीं भिगा जा।
ओ सावन! तू मन में आ जा ।।
जम कर बादल न बरसे
तो थोड़ी-सी बौछार सही
रस की धार मिले न मिले
बस तर कर दे मन कहीं-कहीं
खुशियों के कुछ बीज उगा जा।
ओ सावन! तू मन में आ जा ।।
पवन के मीठे झोंकों से
रूठे मन को सहला दे
कभी नज़ारे बदलेंगे ये
आँखों को भी बतला दे
कानों को मलहार सुना जा।
ओ सावन! तू मन में आ जा।।-
पात पात छेड़े मुझे
रंग अंग ऐसे छुए
हया के गाल रंग गयी
गुलाल लाल मैं हुयी
बन विहग अपने नभ की
मीन हूँ अब भी जल की
मन लहर हिलोल उठे
छुअन को किलोल उठे
रंभा हूँ न उर्वशी मैं
तुम नहीं हो अनमनी मैं
छू लो अंग संग लगा
तेरी प्रीत मेरा मन रंगा-
मेघ मल्हार की टेक लगा कर
हांथों पर कुछ बूंदें सजा कर
selfi लेकर उसे जता कर
क्या मल्हार को देखा तुमने?
चलो थोडा झोली अब खोलो
आँख मिचोली अब तो छोडो,
यादों के वो रंग पुराने
संग चलो उसको दोहराने..
रंग बिरंगे छाते की जो
खुल गयी कोई अलमारी,
छीन जाता था वो भी उस पल
जब बढ़ जाये उसकी सवारी।
छप छप करके , भीगा बस्ता
बारिश की लय में मेंढक हँसता,
भीग ना जाये जूता मेरा
भला इस बात से कौन था डरता।
कूद कूद कर
नाच नाच कर ,
नदियों सी सड़के
लांघ लांघ कर।
ज़रा याद करो वो दिन पुराने
जब मल्हार के सब दीवाने,
आज बचा बस ढोंग दिखावा
काम ने सबसे है करवाया।।
साथ काम के खुश हो लो तुम,
बचपन के वो पर खोलो तुम
दुनिया में हैं कई त्यौहार
उनमे से ही एक
मल्हार..-
मेघ तेरे कितने है रूप!
कभी सहज कभी विकराल स्वरुप।
इंद्रधनुष मन मस्त मल्हार!
रौद्र रूप तेरा प्रचंड अपार।
जब सावन बन बौछार लगाए!
ह्रदय..प्रिय मिलन को आतुर भाये।
जब प्रलय करो तुम भीषण बिध्वंशी!
सब लील लियो बनकर के भक्षी।
मेघ तेरे कितने हैं रूप!
कभी सहज कभी विकराल स्वरुप।-