कच्ची कलियांँ, कच्ची दुनिया, कच्चे सारे रंग ।
प्रीत का इक रंग न छूटा धुल गया सारा अंग ।।
प्रलय हुआ, संसार मिट गया, टूटा श्वासोंश्वास ।
मरते मरते भी ना छूटी पिया मिलन की आस ।।
विरह में जलके राख हो गई कैसा ल्याया रोग ।
कोई बैद समझ ना पाया पिया मिलन का जोग।।
श्वास श्वास पे नाम उसी का जाप हृदय से होय।
मन की पीड़ा राम ही जाने और न जाने कोय ।।-
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राम हमारे प्राण तुम
जीवन का आधार तुम
तुम से ही साँसे हैं मेरी
मेरा पूरा संसार तुम-
कितना खालीपन है! दुनिया कितनी अर्थहीन है! सब कुछ कितना बेमानी है! ..... उतना ही जितना अदरक के बिना चाय, बिन घी की दाल, त्रिकोणमिति के बिना गणित, गुरुत्व बल के बिना भौतिकी.... और.. प्राचीनता के बिना इतिहास...!
कोई मायने नहीं ज़िंदगी के... कोई मायने नहीं.... बस जिए जाना है.... यूँ ही।-
कुछ ज़ख्म हरे से हैं, कुछ अल्फाज़ अधूरे हैं
इक याद तबाही सी है, बस ग़म ही पूरे हैं-
ऐसा फागुन लागा है, मन में उपजा राग
वैरागी जीवन में खिला, पुरवा सा अनुराग-
आरंभ मिला या
अंत पा लिया?
या बचपने में अपने
संग पा लिया?
कौन मिला है तुमको ऐसे
ज्यों तुमने बसंत पा लिया?-
कोमल हृदय तुम्हारा
और मैं हूंँ इक पाषाण प्रिए
देखो मेरे पास न आना
मत करना विश्वास प्रिए
सुख न तुमको दे पाऊंँगा
हृदय विदीर्ण हो जाएगा
मधुर मिलन का स्वप्न तुम्हारा
चूर्ण चूर्ण हो जाएगा
तुम हो कली सुकोमल सी
मैं कांँटों का ताज प्रिए
कोमल हृदय तुम्हारा
और मैं हूंँ इक पाषाण प्रिए-